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    Tuesday, March 19, 2024
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      सभ्यता के अंधे तहखाने में दफन है रूखाई की बौद्धकालीन सभ्यता

        -: एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क :-

      धार्मिक, बौद्धकालीन,ऐतिहासिक  तथा राजनीतिक दृष्टिकोण से चंडी प्रखंड का अपना अलग महत्व रहा है। चंडी मगध के नौ सिद्ध स्थलों में एक माना जाता है। इस स्थल के दोनों छोरो पर मुहाने नदी है।छठी शताब्दी के राजनीतिक पराकाष्ठा के दौरान मगध तथा इसकी राजधानी राजगृह के बीच में स्थित चंडी का कोई लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

      लोक स्मृति की व्यापकता ही इसका प्रमाण माना जाता है।ऐसा कहा जाता है कि चीनी यात्री फाहियान नालंदा विश्वविद्यालय जाने के दौरान रूखाई-नवादा के पास ढिबरा गाँव पर रात्रि विश्राम किया था।NALANDA CHANDI

      ऐतिहासिक दृष्टि से भी चंडी का महत्व रहा है। तुलसीगढ, माधोपुरगढ, हनुमानगढ, दयालपुर, सतनाग सहित दो दर्जन  गाँव है, जहाँ के गर्भ में प्रागैतिहासिक काल से लेकर मौर्यकाल तक के अवशेष दबे हुए है।जहाँ विभिन्न काल के नगरीय सभ्यता होने के प्रमाण मिलते है।

      चंडी प्रखंड का रूखाई गाँव में कई सभ्यताओं के अवशेष आज भी मिलते है।यह गाँव आज भी बौद्धकालीन प्रवृत्तियों का घोतक माना जाता है। रूखाई में पांच बड़े तालाब है जिसकी वजह से इस गाँव का नाम रूखाई पड़ा। रू का अर्थ पांच और खाई का मतलब तालाब।

      इसी रूखाई में एक बार फिर बौद्धकालीन अवशेष मिले है। बीते शुक्रवार को रूखाई में तालाब खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की खंडित मूर्ति मिलने की खबर पर लोगों का हुजूम दौड़ पड़ा।

      बताया जाता है कि रूखाई में पांच बड़े तालाब हुआ करते थे। जिसमें से चार का अतिक्रमण कर लिया गया है। जल जीवन और हरियाली कार्यक्रम के तहत उसी तालाब की खुदाई चल रही थी। खुदाई के दौरान काला पत्थर की मूर्ति निकली। जो भगवान बुद्ध की प्रतिमा जैसी लग रही है।

      इस मूर्ति को देखने से बौद्धकालीन और बौद्ध काल से पूर्व के समृद्ध इतिहास के साक्ष्य की बात को बल मिलता है।इसके अलावा खुदाई के दौरान एक दीवार के अवशेष  भी नजर आई।

      कहते हैं ‘गम का पता जुदाई से और इतिहास का पता खुदाई से’ ज्ञात होता है। सभ्यता के अंधे तहखाने में दफन रूखाई गाँव पर सटीक बैठती है। अपने इतिहास से बेखबर, गुमनाम और वीरान यह टीला सैकड़ों -हजारों साल से अपने आप में एक समृद्ध विरासत और कई सभ्यताओं का इतिहास समेटे है। जो कभी प्रलंयकारी बाढ़ से तबाह हो गई थी।

      वर्ष 2014 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग की टीम ने 13 दिन तक रूखाई गाँव के टीले के दफन इतिहास को मिट्टी खोदकर निकालने का प्रयास किया था। जैसे -जैसे कुदाल -फावडे मिट्टी का सीना फाड़ते गए वैसे -वैसे उत्खनन में तीन हजार वर्ष पूर्व की इतिहास की परते खुलती चली गई।

      मौर्यकाल,शुंग,कुषाण, गुप्त, पाल एवं सल्तनत वंश के समकालीन जीवन शैली एक ही स्थान पर पर पाये गये।इस टीले की खुदाई से ज्ञात हुआ कि लगभग दो किमी के क्षेत्रफल में बौद्धकाल से भी पूर्व यहां अपनी संस्कृति फैली हुई थी। एक समृद्ध नगरीय व्यवस्था थी।जो बौद्ध भिक्षुओं को आकर्षित करती थी।खुदाई में जो कुंए मिलें थे, वो शुंग और कुषाण वंश युग के संकेत देते थे।

       अगर सही ढंग से इसकी खुदाई होती तो यहां ताम्र पाषाण युग के अवशेष मिलने की संभावना थी।

      इससे पूर्व की इस टीले में दफन कई इतिहास हकीकत बनते खुदाई पर ब्रेक लग गया। रूखाई गाँव के गर्भ में छिपे कई रहस्यों पर से पर्दा उठता इससे पहले  उत्खनन कार्य में लगें पुरातत्व विभाग के निदेशक गौतम लांबा ने तकनीकी कारणों से खुदाई बंद कर दिया।आधे-अधूरे खुदाई के बीच पुरातत्व टीम लौट गई। सितम्बर 2014 में फिर से खुदाई का वादा कर।

      रूखाई के लोग इंडस वैली के समकालीन सभ्यता का सपना देख रहे थे।लेकिन उनके पूर्वजों का इतिहास टीले में दफन है।आज इस टीले पर कई परिवार अपने पूर्वजों के इतिहास से बेखबर जीवन -यापन कर रहे हैं,शायद अपने पूर्वजों की विरासत संभाले!

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