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    Friday, March 29, 2024
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      वहां उखड़ने का खतरा, जहां टिका है नीतीश का अंगदी पांव

      वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव तथा वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न ने नालन्दा के अनचैलेंज्ड लीडर नीतीश के लिए खतरे की घंटी बजा दी है और अब यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि इस बार जदयू प्रत्याशी के चयन में जरा सी भी चूक हुई तो लोकसभा चुनाव में नीतीश के पाँव उखड सकते हैं……”

      -: वरिष्ठ पत्रकार  डॉ. अरुण कुमार मयंक का बेबाक विश्लेषण :-

      भारतीय लोकतंत्र की चुनावी राजनीति में प्रारम्भ से ही जातिवाद का घुन लगा हुआ है। बिहार और उत्तर प्रदेश तो इस मामले में सबसे ऊपर रहा है। अब तक होता यह रहा है कि सूबे के मुखिया जिस जाति से आते हैं, उस जाति के लोग सारे गिला-शिकवा भूल जाते हैं और चुनाव के वक्त आँख मूँद कर सत्तारूढ़ दल के पक्ष में कूद पड़ते हैं।PHOTO.2 Rajgir ke Jawahar Navoday Vidyalay mein 31 October 2017 ko 142th Patel Jayanti Samaroh mein Minister Shrawan Kumar MP Kaushalendra Kumar Others

      पर इस बार बिहार की चुनावी राजनीति करवट बदल सकती है। और वह भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले से ही। इनके अपने ही बगावत पर उतरने को उतावले दीख रहे हैं।     

      आज से यही कोई तक़रीबन ढाई दशक पहले लालू प्रसाद के मुख्यमंत्रित्व में बिहार में कथित रूप से सामाजिक न्याय की सरकार थी। सूबे की सियासी सत्ता में वाजिब भागीदारी को लेकर विगत 12 फ़रवरी 1994 को बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में कुर्मी चेतना महारैली का अपूर्व आयोजन किया गया था।

      इस कुर्मी महारैली के संयोजक थे सूर्यगढ़ा के तत्कालीन सीपीआई विधायक सतीश कुमार। दो दिन पहले तक नीतीश कुमार महारैली के आयोजन के विरुद्ध थे। पर महारैली के एक दिन पहले ही यानि 11 फ़रवरी की शाम में जुटी भारी भीड़ को देख कर उनका मन डांवाडोल होने लगा और वे 12 फ़रवरी को कुर्मी चेतना महारैली के मंच पर चढ़ गए।

      PHOTO.1 Biharsharif Shram Kalyan Kendra mein 31 October 2017 ko 142th Patel Jayanti Samaroh mein Deputy CM Sushil Kr Modi MP RCPSingh MLA Dr Sunil Kumar Others

      महारैली के मंच से अपने सम्बोधन में नीतीश कुमार ने कहा था कि यहां उमड़े विशाल जन समुदाय को देख कर आज हमें यह अहसास हो चला है कि अब इस समाज की उपेक्षा करके कोई भी सरकार नहीं टिक सकती है- चाहे वह पटना की हो या फिर दिल्ली की!

      नीतीश के मुंह से यह सुनते ही महारैली में उमड़ी भीड़ ने अपने प्रिय नेता “नीतीश कुमार- ज़िंदाबाद,ज़िंदाबाद” के गगनभेदी नारे लगाये थे। और इस शोर में महारैली के संयोजक सतीश कुमार कहीं खो गए थे। इसके बाद नीतीश की राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं कुलांचे भरने लगी थीं।

      इसके बाद जनता दल (जॉर्ज), समता पार्टी और जनता दल यू के राजनैतिक सफ़र को पूरा करते हुए नीतीश कुमार ने कुर्मी महारैली के साढ़े ग्यारह वर्षों के बाद 24 नवंबर 2005 को उसी ऐतिहासिक गांधी मैदान में एनडीए के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तथा बिहार की बागडोर सम्भाली।

      PHOTO.3 Nalanda ke Sarmera Parnawan me 23 August 2018 ko JDU Atipichhda Sammelan ke purv Road Show me Rajya Sabha Sadasya RCP Singh Others
      नालंदा के खेवनहार बनने की जुगत में राज्य सभा सदस्य आरसीपी सिंह…

      उस समय राजधानी पटना से ज्यादा जीत का जश्न नालंदा में मनाया गया था। यहां के कुर्मी समाज को यह लगने लगा था कि अब सत्ता में उन्हें वाजिब भागीदारी मिल जायेगी और कुर्मी समाज की विभिन्न उपजातियों की  राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं परवान पर थीं।     

      बिहार के चुनावी मानचित्र पर 1952 से ही चंडी विधानसभा क्षेत्र जगमगाता नक्षत्र रहा था, जबकि हरनौत विधानसभा क्षेत्र 1977 में अस्तित्व में आया है। चंडी विधान सभा क्षेत्र नालंदा के कुर्मी समाज की शान रहा है। यहाँ से कुर्मी समाज के दिग्गज व सर्वमान्य नेता डॉ. रामराज सिंह सूबे में शिक्षा मंत्री रहे।

      MP Kaushalendra Kumar
      नालंदा सांसद कौशलेन्द्र कुमार….

      नालंदा जिला में चंडी ही एक मात्र विधानसभा क्षेत्र रहा है, जहाँ 1952 से 2005 तक के किसी भी विधानसभा चुनाव में कुर्मी समाज के प्रत्याशी की जीत होती रही है। नीतीश राज में हुए लोकसभा व विधानसभा क्षेत्र के नए परिसीमन में चंडी विधानसभा क्षेत्र को विलोपित कर दिया गया। इस परिसीमन के क्रम में चंडी के प्रबुद्ध कुर्मी मुख्यमंत्री से मिले थे।

      मुख्यमंत्री ने आश्वासन भी दिया था कि विलोपन हरनौत विधानसभा क्षेत्र का होगा। पर नए परिसीमन में हो गया विलोपन चंडी विधानसभा क्षेत्र का और रह गया हरनौत विधानसभा क्षेत्र।

      कुर्मी समाज के प्रबुद्धजनों का कहना है कि चंडी विधानसभा क्षेत्र  ख़त्म नहीं होना चाहिए था। पर हरनौत विधानसभा क्षेत्र को बचाने के लिए चंडी विधानसभा क्षेत्र को ख़त्म किया गया। और यह कुत्सित साजिश की है कुर्मी समाज के सबसे बड़े कथित अलम्बरदार ने, क्योंकि इनके खून का रिश्ता हरनौत से है।

      Shrawan Kumar
      नालंदा विधायक व मंत्री श्रवण कुमार….

      तात्पर्य यह कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पैतृक गांव कल्याणबिगहा, ससुराल सेवदह तथा ननिहाल कोलावां सब हरनौत विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत पड़ता है। चंडी विस का विलोपन नालंदा जिला के राजनैतिक मानचित्र के इतिहास से पूर्व शिक्षामंत्री डॉ. रामराज सिंह के राजनैतिक कृतित्व व सामाजिक व्यक्तित्व को मिटाने की सियासी साजिश के अलावा कुछ और नहीं है। 

      इस आक्रोश को दबाने के लिए नीतीश ने 2008 में चंडी विधायक हरिनारायण सिंह को शिक्षा मंत्री बनाया था। पर 2010 के विधानसभा चुनाव के बाद से हरनौत के विधायक हरिनारायण सिंह को मंत्रिमंडल में कोई पद नहीं दिया गया है।

      बात यहीं पर ख़त्म नहीं हो जाती। 2010 के विधानसभा चुनाव तक ‘जनता दल यू’  का ‘भारतीय जनता पार्टी’ के साथ गठबंधन था। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले ही यह गठबंधन टूट चुका था। सो 2014 में जदयू ने सूबे में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ा।

      नालन्दा तथा पूर्णिया मात्र दो लोकसभा क्षेत्रों में जदयू की जीत हुई और सूबे की जनता ने नीतीश को उनकी औकात बता दी। नालन्दा के कुर्मियों ने सांसद कौशलेन्द्र को दुबारा जदयू प्रत्याशी बनाये जाने का भारी विरोध किया था। कुर्मियों ने नीतीश की चुनावी सभाओं में काले झंडे दिखाए व जूते-चप्पल भी चलाये थे।

      pranab prasad
      ई. प्रणव प्रकाश………..

      इस लोकसभा चुनाव में नीतीश आरसीपी सिंह को ही नालन्दा से चुनाव लड़ाना चाहते थे, लेकिन श्रवण कुमार ने अड़ंगी मार कर कौशलेन्द्र कुमार को पुनः टिकट दिलवा दिया था। तब से श्रवण कुमार और आरसीपी सिंह के बीच अंदर ही अंदर सियासी खुन्नस बहुत बढ़ गई। दोनों ही एक दूसरे को अपनी राह का रोड़ा समझते रहे हैं।

      एक बात और! इसी लोकसभा चुनाव में अस्थावां के जदयू विधायक डॉ जितेन्द्र कुमार के पैतृक गाँव उतरथू के खंधे में आप के कोचैसा कुर्मी प्रत्याशी ई. प्रणव प्रकाश की बुरी तरह पिटाई की गई थी। यह बात ई. प्रणव प्रकाश के समर्थक वोटरों को अभी तक बुरी तरह साल रही है।  

      भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से तिलमिलाये नीतीश ने 2015 में लालू और कांग्रेस का दामन थामा तथा महागठबंधन में शामिल हो गए। 2010 में हिलसा विधानसभा क्षेत्र से जदयू की कुर्मी विधायक प्रो. उषा सिन्हा जीती थीं।

      2015 के विधानसभा चुनाव  में नीतीश ने हिलसा विधानसभा क्षेत्र को राजद के कोटे में डाल दिया। यह मालूम होते ही कोचैसा कुर्मी बौखला उठे और अंदर ही अंदर नीतीश के खिलाफ गोलबंद होने लगे। यहां से लालू प्रसाद ने अत्री मुनि उर्फ़ शक्ति सिंह यादव को राजद प्रत्याशी बना दिया। इनके खिलाफ एनडीए ने रंजीत डॉन की पत्नी कुमारी दीपिका को लोजपा प्रत्याशी के रूप में उतार दिया।

      उधर नालन्दा विधानसभा क्षेत्र में कैबिनेट मंत्री श्रवण कुमार के खिलाफ भाजपा ने “साम-दाम-दंड-भेद” में माहिर अजनौरा पंचायत के दबंग मुखिया रहे कौशलेन्द्र कुमार उर्फ़ छोटे मुखिया (कोचैसा कुर्मी) को अपना प्रत्याशी बना कर तुरुप की चाल चल दी। दोनों ही विस क्षेत्रों में नीतीश के उक्त निर्णय के खिलाफ चुनाव प्रचार चलने लगा और नीतीश के द्वारा मान-मनौव्वल किया जाने लगा।

      Deepika Kumari
      रंजीत डॉन की पत्नी कुमारी दीपिका…..

      हिलसा में कुर्मियों में रंजीत डॉन की छवि ठीक नहीं रहने के कारण कुमारी दीपिका की हार हो गई तथा राजद के शक्ति सिंह यादव की अच्छी जीत हुई। पर नालन्दा में छोटे मुखिया ने मंत्री श्रवण कुमार को “छठी का दूध” की याद दिला दी। नीतीश को  जितनी चुनावी ताकत जिले के छह विधानसभा क्षेत्रों में लगानी पड़ी, उससे कहीं अधिक नालन्दा विधानसभा क्षेत्र में लगानी पड़ी।

      यहां नीतीश के चहेते मंत्री श्रवण कुमार की मात्र ढाई हजार वोटों से किसी प्रकार जीत हो सकी। छोटे मुखिया ने इस हार को हार नहीं, बल्कि इसे पोलिटिकल चैलेंज के रूप में लिया है तथा चुनाव के बाद एक दिन के लिए भी नहीं बैठे हैं।

      नीतीश को अनचाहे ही राजनैतिक लाचारीवश अपनी कैबिनेट में लालू के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव को स्वास्थ्य मंत्री तथा छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। बस! यहीं से लालू-नीतीश के बीच खटपट शुरू हो गई और मात्र 20 महीने में ही नीतीश-लालू के 18 सालों की दुश्मनी फिर से सतह पर आ गई।

      MLA Dr Sunil Kumar
      भाजपा विधायक डा. सुनील कुमार…..

      आखिर 26 जुलाई 2017 को “महागठबंधन” अपने स्वाभाविक नतीजे पर पहुंच गई। सियासी तिकड़म में माहिर नीतीश ने फिर से भाजपा से हाथ मिलाकर बिहार में एनडीए की सरकार बना ली। इसके साथ ही उन भाजपा नेताओं को गहरा झटका लगा है, जो भाजपा की टिकट पर आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़ने की महत्वाकांक्षा पाल रहे थे।

      राज्य सभा में ब्यूरोक्रेट सांसद आरसीपी सिंह जदयू संसदीय दल के नेता बनाये गए। तब छोटे मुखिया ने झट से दिल्ली जाकर उन्हें बधाई दे दी। भाजपा में रहते हुए भी राजनीति के किसी मंजे खिलाड़ी की भांति छोटे मुखिया ने आरसीपी सिंह से निकटता कायम करने में कोई देरी नहीं की।

      यहाँ पर एक और राजनैतिक घटनाक्रम उल्लेख्य है। नालन्दा में एनडीए ने 31 अक्टूबर 2017 को दो स्थलों पर विगत लौहपुरुष सरदार पटेल की 142 वीं जयंती मनाई। इस बार पटेल जयंती मनाने को लेकर सत्ताधारी जदयू-भाजपा के बीच खूब सियासी खेल हुआ।

      इस खेल का केन्द्र थे नालन्दा के जदयू विधायक सह काबीना मंत्री श्रवण कुमार और 2015 के विस् चुनाव में बहुत ही कड़ी टक्कर देने वाले प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी कौशलेन्द्र कुमार उर्फ़ छोटे मुखिया। इन दोनों कुर्मी छत्रपों ने राजगीर और बिहारशरीफ में अलग-अलग पटेल जयंती समारोह आयोजित किया तथा अपनी राजनैतिक दबंगता का अहसास अपने-अपने दल के आकाओं को कराने का प्रयास किया।

      Dr Jitendra Kumar
      विधायक जितेन्द्र कुमार

      आरसीपी सिंह के राज्य सभा सदस्य बनने तक नालन्दा में नीतीश के बाद काबीना मंत्री श्रवण कुमार की ही चलती थी। बिहारशरीफ श्रम कल्याण केंद्र के मैदान में पहली बार पटेल जयंती मनाई जा रही थी।

      छोटे मुखिया के समारोह में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन, बिहारशरीफ के भाजपा विधायक डॉ सुनील कुमार, जदयू के ब्यूरोक्रेट सांसद आरसीपी सिंह व विधान पार्षद-सह-जदयू के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार आदि समेत जिले के अधिकांश एनडीए नेताओं ने भाग लिया। यहाँ भीड़ भी अच्छी-खासी जुटी।

      उधर काबीना मंत्री श्रवण कुमार के राजगीर समारोह की भद्द पिट गई। इसमें सांसद कौशलेन्द्र कुमार व इस्लामपुर के जदयू विधायक चन्द्रसेन प्रसाद के अलावा अन्य विधायक अथवा जदयू का कोई चर्चित नेता नहीं गया।

      हद तो तब हो गई जब राजगीर के जदयू विधायक रवि ज्योति तथा मंत्री के खासमखास अतिपिछड़ा आयोग के पूर्व सदस्य अरुण कुमार वर्मा समारोह में गए तो जरूर, पर दोनों अस्वस्थता का बहाना बना कर बिहारशरीफ के समारोह में भाग आये। भीड़ इतनी कम थी कि मंत्री ने सुरक्षा में लगे पुलिस अधिकारियों को भी बगल में बिठा कर फोटो खिंचवाई।

      राजनैतिक प्रेक्षकों का मानना है कि जयंती समारोह के बहाने उक्त दोनों प्रतिद्वंदियों ने अपने-अपने राजनैतिक ताकत का इजहार किया है तथा हाई प्रोफाइल पोलिटिकल स्ट्रेटेजी प्रदर्शित की है।

      2019 के लोकसभा चुनाव में अब तकरीबन 8-9 महीने रह गए हैं। ऐसे में नीतीश को अपने गढ़ नालन्दा को बचाने की स्वाभाविक चिंता सता रही है।  तभी तो नीतीश बार-बार नालन्दा के दौरे पर आ रहे हैं। वे कोई मौका चूकने देना नहीं चाहते हैं, चाहे किसी नेता-कार्यकर्ता के यहाँ शादी हो या फिर ब्रह्मभोज।

      और तो और नीतीश ने राजनैतिक जीवन में पहली बार राजगीर मलमास मेला तथा बाबा मनीराम का लंगोट मेला का उद्घाटन कर नालंदावासियों को अपनेपन का अहसास दिलाया है।

      नालंदा में अबतक राजद और कांग्रेस जिस मानक पर अपने लिए स्क्रीनिंग कर रहा है, महागठबंधन के रास्ते में कांग्रेस की दावेदारी पर मुहर लगी, तो यह सीट नीतीश के हाथ से फिसल भी सकती है।

      1989 तक यहाँ का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के कुर्मी प्रत्याशी अवधेश सिंह, कैलाशपति सिंह, प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद और रामस्वरूप प्रसाद जीतते रहे। राजद और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की नजरें भाजपा-जदयू के विक्षुब्ध नेताओं पर लगी हैं।

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      कौशलेन्द्र कुमार उर्फ़ छोटे मुखिया…..

      इनमें जिन नामों की सर्वाधिक चर्चा है, उनमें बिहारशरीफ के विधायक डॉ सुनील कुमार, पूर्व विधायक राजीव रंजन तथा नालन्दा विधानसभा क्षेत्र के पूर्व भाजपा प्रत्याशी कौशलेन्द्र कुमार उर्फ़ छोटे मुखिया शुमार हैं।

      भाजपा के इन तीनों दिग्गजों ने राजद-कांग्रेस लॉबी के दावों को सिरे से ख़ारिज किया है तथा इसे कोरी बकवास बताई है। इनके अलावा कांग्रेस के जिलाध्यक्ष दिलीप कुमार, पूर्व प्रदेश प्रतिनिधि सुनील कुमार सिन्हा (अधिवक्ता) तथा रंजीत डॉन की पत्नी कुमारी दीपिका के नाम भी पूरी चर्चा में हैं।

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      हिलसा विधायक सह प्रदेश राजद प्रवक्ता अत्रि मुनि उर्फ शक्ति सिंह यादव….

      और यदि राजद के कोटे में यह सीट गयी तो हिलसा के विधायक शक्ति सिंह यादव, युवा राजद के प्रदेश महासचिव सुनील कुमार यादव तथा बेन प्रखंड के प्रमुख धनंजय प्रसाद आदि की दावेदारी बन सकती है।

      राज्य सभा सदस्य आरसीपी सिंह की बढ़ी हुई सक्रियता और उनके 23 अगस्त 2018 के रोड शो व सरमेरा के परनावां में अतिपिछड़ा सम्मलेन को लेकर यह कयास जोरों पर है कि इस बार नालन्दा के सांसद कौशलेन्द्र कुमार का जदयू से पत्ता कट सकता है और आरसीपी सिंह चुनाव लड़ सकते हैं।

      प्रबुद्ध कुर्मीजनों का तर्क है कि नए परिसीमन में नालन्दा लोकसभा क्षेत्र में चंडी और हरनौत के शामिल कर दिए जाने से पूरे संसदीय क्षेत्र में अब सर्वाधिक वोट कोचैसा कुर्मियों के हो गए हैं। इसलिए अब नीतीश कुमार को इस नए परिप्रेक्ष्य में जदयू का प्रत्याशी चयन करना चाहिए। साथ ही कोचैसा कुर्मियों की सुरक्षित सीट चंडी विस् को विलोपित कर देने से भी वहां के लोग बहुत आक्रोशित हैं।

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      बेन प्रखंड प्रमुख धनंजय प्रसाद…..

      इतना ही नहीं, इनकी हिलसा सीट को राजद के हवाले कर देने से भी ये लोग काफी गुस्से में हैं। इन लोगों का तर्क है कि इसके बदले बिहारशरीफ की सीट राजद को दी जानी चाहिए थी। शायद यही कारण है कि इन 13 वर्षों के शासन काल में नीतीश की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के आगे विभिन्न उपजातियों में बंटे कुर्मी समाज की अपेक्षाएं व भावनाएं कहीं न कहीं से आहत होती प्रतीत हो रही हैं।

      तभी तो अपनी पलकों पर बिठाये रखने वाले सर्वप्रिय नेता के विरुद्ध नालन्दा के कुर्मी समाज ने “महतो बाबा” की पूजा की आड़ में सामाजिक जागरण अभियान चलाना शुरू कर दिया है। बस! यहीं से नालन्दा में शंका-प्रतिशंकाओं का दौर शुरू हो जाता है। 

      नालन्दा जदयू का गढ़ है और मुख्यमंत्री का घर भी। 1996 से नालन्दा पर नीतीश का एकछत्र साम्राज्य रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू प्रत्याशी कौशलेन्द्र कुमार येन-केन-प्रकारेण मात्र नौ हजार वोटों से जीत गए।  

      लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में नालन्दा जिले के मुफस्सिल विधानसभा क्षेत्रों से महागठबंधन की जीत तथा मुख्यालय बिहारशरीफ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के जदयू प्रत्याशी असगर शमीम की हार नीतीश के अंतर्मन को झकझोर रही है।

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