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    Friday, March 29, 2024
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      मृदुभाषी व मस्तमौला स्वभाव के साथ सौम्य व्यक्तित्व के धनी थे बालकवि बैरागी

      हिंदी साहित्य के शिखर पुरूष बाल कवि बैरागी का 13 मई 2018 को निधन हो गया। उनके निधन से मर्माहत  जिले के साहित्यकार और साहित्य प्रेमियों ने  स्थानीय सुभाष चंद्र बोस पार्क में श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर उन्हें याद किया।”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (संजय कुमार)।  इस अवसर पर साहित्यकारों ने कहा कि बालकवि बैरागी को उनकी संवेदनशील रचनाओं सरस काव्य पाठ एवं साहित्य से जुड़े विषयों पर उनके असीम ज्ञान के लिए जाना जाएगा। इनकी कविताओं में मानवीय मूल्य एवं सम्वेदनाओं का जो आवेग मिलता है उसके उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं। यह हिंदी साहित्य के शिखर पुरूष थे।kavi baragi1

      कार्यक्रम की अध्यक्षता साहित्यकार, गीतकार, कवि हरिश्चंद्र प्रियदर्शी, तथा मंच संचालन साहित्यप्रेमी कवि राकेश बिहारी शर्मा ने किया।

      कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार,गीतकार,कवि हरिश्चंद्र प्रियदर्शी ने बालकवि बैरागी जी को हिंदी का उन्नायक कवि बताया और कहा कि एक दौर था जब हिंदी कविता को मंच पर स्थापित करने में बालकवि बैरागी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

      गोपालदास नीरज ने गीत, काका हाथरसी ने हास्य और बालकवि बैरागी ने ओज एवं संवेदनशीलता से भरी अपनी रचनाओं को गाकर हिंदी काव्य मंच को एक नई ऊंचाई दी।

      मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश ने कहा कि उन्हें जब भी मौका मिला उन्होंने हिंदी के उन्नयन के लिए काम किया उनकी रचनाओं से लोगों को एक नई ऊर्जा हर नई दिशा मिलती है।

      चाहे सौ फागुन बिक जाए, पर मैं गंध नहीं बेचूंगा

       डीपीआरओ लाल बाबू सिंह ने बैरागी को मानवीय मूल्य व सम्वेदनाओं का कवि बताया। उन्होंने बैरागी जी की कविता “चाहे सभी सुमन बिक जाए, चाहे ये उपवन बिक जाए, चाहे सौ फागुन बिक जाए, पर मैं गंध नहीं बेचूंगा”  अपनी गंध नहीं बेचूंगा के माध्यम से तत्कालीन दल-बदलू राजनीति को नकारा एवं राजनीतिक तथा साहित्य में निष्ठा का एक मानक स्थापित किया।

      नंदरामदास बैरागी असली नाम

      मशहूर शायर बेनाम गिलानी ने बताया कि उनका वास्तविक नाम नंदरामदास बैरागी था। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री कैलास नाथ काटजू जी द्वारा उन्हें बालकवि बैरागी का नाम दिया गया उनके द्वारा बच्चों के लिए लिखी गई बाल कविताएं काफी लोकप्रिय है।

      राजनीतिक जीवन भी बिताया बालकवि बैरागी ने लंबे समय तक राजनीतिक जीवन भी बिताया। वह संसद के सदस्य तथा मध्य प्रदेश के मंत्री भी रहे लेकिन कहीं भी उनके साहित्य में राजनीति की दखलंदाजी नहीं दिखती है।

      साहित्यकारों ने कहा कि बैरागी जी की खासियत थी कि वह प्रशंसकों के पत्रों का जवाब खुद अपने हाथों से लिखकर देते थे। हरिवंश राय बच्चन के बाद यह खासियत सिर्फ बैरागी जी में ही मिलती है।

      26 फिल्मों में लिखे गीत

       फिल्मकार एसके अमृत ने कहा कि बालकवि बैरागी ने 26 फिल्मों में गीत लिखे हैं। उनका गीत तू चंदा मैं चांदनी आज भी जन-जन की जुबान पर है। इस अवसर पर नालंदा नाट्य संघ के अध्यक्ष रामसागर राम व उनकी टीम ने बैरागी जी की रचनाओं का सस्वर गायन किया। 

      बालकवि बैरागी जी के कंठ में साक्षात् सरस्वती का वास

      मंच संचालन करते हुए साहित्यप्रेमी कवि राकेश बिहारी शर्मा ने अपने उद्बोधन में बैरागी जी के बारे में बताते हुए  कहा कि स्व. बालकवि बैरागी का जन्म 10 फरवरी 1931 को रामपुराग गांव में पिता द्वारिकादास बैरागी एवं माता धापूबाई बैरागी के घर हुआ था।

      उन्होंने अपनी पहली रचना 9 साल की उम्र में लिखी जब वे चौथी कक्षा में पढ़ते थे, तब स्कूल में आयोजित एक भाषण प्रतियोगिता का विषय था ‘व्यायाम’। चौथी कक्षा की तरफ से नंदराम दास को भी प्रतियोगियों की सूची में डाल दिया।

      उन्होंने ‘व्यायाम’ को अपने नाम ‘नंदराम’ से तुकबंदी करते हुए आखरी में लिखा – “कसरत ऐसा अनुपम गुण है कहता है नंदराम भाई करो सभी व्यायाम।“ जब ये पंक्तियाँ उन्होंने अपने हिन्दी शिक्षक पं. श्री रामनाथ उपाध्याय को सुनाई तो उन्होंने इस नन्हें बालक को गले लगाकर कहा, तेने आज अपना भविष्य खुद लिख दिया है, अब सरस्वती माता तेरी जिव्हा पर बिराज गई है।

      इसके बाद तो सरस्वती की कृपा उन पर जीवन भर बनी रही। बालकवि बैरागी जी बचपन में अपने पिता द्वारिकादास बैरागी के साथ सारंगी पर गाते और बजाते और रियाज करते थे, इस लिए ये गेय कविता खूब लिखा और गाये करते थे । 

      मौके पर साहित्यकार प्रोफ़ेसर फजल रसूल, संगीतकार व मशहूर तबलावादक लक्ष्मीचन्द आर्य, ओजस्वी कवि व सृंगार रस के मशहूर कवि अर्जुन प्रसाद बादल, साहित्यप्रेमी,कवि राकेश बिहारी शर्मा, निशांत भास्कर, जादूगर प्रेम कुमार, अतुल मयंक सहित काफी संख्या में साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।

      धन्यवाद ज्ञापन नालंदा का गाँधी, गांधीवादी सुब्बाराव का परम शिष्य साहित्यकार दीपक कुमार ने किया।

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