“ग्रामीण पुलिस के पास जाते हैं तो उन्हें कार्रवाई की धमकी दी जाती है। हद तो यह है कि जिला मुख्यालय से महज दस किलोमीटर की दूरी पर यह गोरख धंधा फल-फूल रहा है और जिला प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं…..”
सरायकेला (संतोष कुमार)। सरायकेला-खरसावां जिला में भू- माफियाओं का नया और सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया है, जहां शातिर भू- माफियाओं ने भोले- भाले ग्रामीणों से जमीन के बदले मुआवजा और नौकरी देने के नाम पर पहले तो सैकड़ों एकड़ जमीन ले लिया। फिर उसे दूसरे उद्यमियों के हाथों बेच दिया।
अब ग्रामीण जब काम मांगने कंपनी पहुंचते हैं तो उन्हें यह कहकर भगा दिया जाता है कि आपने जिन्हे जमीन दिया आप वहां जाएं, और ग्रामीणों ने जिन्हें जमीन दिया वह कंपनी दूर- दूर तक अस्तित्व में नज़र नहीं आ रहा।
मामला सरायकेला- खरसांवा जिले के सरायकेला थाना क्षेत्र का है, जहां टाटा- सरायकेला मुख्य सड़क के पास स्थित है बीरबाँस गांव। यहां मुख्य सड़क से दो सौ मीटर की दूरी पर यहां के पचासों ग्रामीणों से करीब पचास एकड़ से भी अधिक जमीन जमीन माफियाओं ने इनफीनीटी इंड्रस्ट्रीयल पार्क प्राइवेट लिमिटेड के नाम से यह कहकर लिया कि आपलोगों को जमीन के बदले मुआवजा और नौकरी दोनो दी जाएगी, लेकिन मुआवजा तो मिला लेकिन नौकरी के नाम पर मिला धोखा.….!
यूं समझिए जमीन माफियाओं के फर्जीवाड़े के खेलः भूमि अधिग्रहण कानून की आड़ में सबसे पहले जमीन माफियाओं ने इनफिनिटी इंड्रस्ट्रीयल पार्क प्राइवेट लिमिटेड नामक फर्जी कम्पनी बनाई, जिसमें इन्होंने मुआवजा और नौकरी देने का एग्रीमेंट जमीन दाताओं से किया।
फिर इन्होंने ब्रिक्स इंडिया, मल्टीटेक ऑटो प्राइवेट लिमिटेड, श्री उन्नत इंडस्ट्रीज, श्याम इंडस्ट्रीज आदि को जमीन बेच दिया, जिसमें ब्रिक्स इंडिया बनकर तैयार हो चुका है और उसमें प्रोडक्शन ट्रायल शुरू हो चुका है, जबकि अन्य कंपनियों का काम चल रहा है।
जबकि एग्रीमेंट के मुताबिक इन कंपनियों के निर्माण कार्य में भी ग्रामीणों को प्राथमिकता देने की बात की गई थी। लेकिन उसमें भी छुटभैये सफेदपोशों ठेका देकर इन ग्रामीणों के साथ धोखा किया गया।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर गोरखधंधे के पीछे का मास्टरमाइंड आखिर है कौन ? वैसे इसकी भी पड़ताल हमने की लेकिन न तो ब्रिक्स इंडिया कम्पनी और न ही अन्य कंपनियों के प्रतिनिधियों ने इस बाबव कुछ भी बताया
हां, साइट पर काम करा रहे एक गार्ड ने काफी नपे- तुले शब्दों में केवल इतना कहा अभी कंपनी निर्माणाधीन है और ग्रामीणों द्वारा समय से पहले नौकरी की मांग की जा रही है। किसी के साथ धोखा नहीं हुआ है। वैसे इस पड़ताल में किसी रंजीत सिंह और राजकुमार अग्रवाल का नाम सामने आया मगर ये सामने नहीं आए।
सबसे अहम बात ये है कि इतने बड़े पैमाने पर जमीन का कारोबार हुआ और सरकारी महकमों को इसकी भनक तक नहीं लगी ये बात हजम करना थोड़ा कठिन है। तो क्या सरकारी अधिकारियों के मिलीभगत से गोरखधंधे का ये खेल हुआ ?
वैसे ये तो जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन फिलहाल ग्रामीण आंदोलन के मूड में नज़र आ रहे हैं। और अब फर्जी इंड्रस्ट्रीयल पार्क, स्थापित उद्योग, सरकार और जिला प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए जमीन के बदले जान देने की बात कर रहे हैं।
वहीं ऐसे गोरखधंधे से सरकार के उन दावों की पोल जरूर खुल जाती है, जिसमें जीरो टॉलरेंस की बात की जाती है।