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    Tuesday, April 16, 2024
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      बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा करेंगे बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का विमोचन

      nav nalandaनालंदा ( राम विलास ) दुनिया में अप्राप्त बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का पुर्नमुद्रण कराया गया है। 60  साल बाद नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय  ने इस बौद्ध ग्रंथ का 41 भौलूम में पुनर्मुद्रण कराया है। बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा इस बौद्ध ग्रंथ का ससमारोह विमोचन करेंगे। मौका होगा तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का उद्घाटन समारोह।

      श्रीलंका के राष्ट्रपति  मैथ्रिपाल श्रीसेन, नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय के कुलाधिपति सह केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री डॉक्टर महेश शर्मा,  राज्यपाल रामनाथ कोविंद,  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसके गवाह  बनेंगे। विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ सुनील प्रसाद सिन्हा ने यह जानकारी दी।

      उन्होंने बताया कि लंबे समय से त्रिपीटक का पुनर्मुद्रण नहीं कराया गया है, जिसके कारण यह महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ देश और दुनिया में अप्राप्त हो गया है। दुनिया के बौद्ध देशों खासकर जापान में इस बौद्ध ग्रंथ की जबरदस्त मांग है। डीम्ड विश्वविद्यालय ने  इस महत्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ के सभी 41 खंडों का पुनर्मुद्रण नई दिल्ली के गवर्नमेंट प्रेस में कराया है।

      उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के पहले कुलपति एवं संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त सचिव एम एल श्रीवास्तव के दिशा निर्देशन में और उनकी पहल पर मात्र पांच-छह महीने की अवधि में इस ग्रंथ का पुनर्मुद्रण कराया गया है। त्रिपिटक – विनय पिटक, सुत्तपिटक और अभी धर्म पिटक में भगवान बुद्ध के उपदेश पाली भाषा में समावेष्ठित की गई है।  महाविहार के पहले निदेशक डॉक्टर भिक्षु जगदीश कश्यप ने इस बौद्ध ग्रंथ का साठ के दशक में पहली बार मुद्रण कराया था। इस पुस्तक का संपादन वैज्ञानिक तरीके से शोध के अनुरूप कराया गया था। शोध के बाद इस ग्रंथ का वैज्ञानिक तरीके से संपादित किया था। डॉक्टर सिन्हा ने बताया कि बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक के प्रकाशन के बाद दुनिया के बौद्ध देशों में महाविहार की प्रतिष्ठा बढ़ी थी। इसका कारण था कि महाविहार ने दुनिया को एक अनमोल ग्रंथ है सुलभ कराया था।

      रजिस्टार ने बताया कि अभी  बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक पाली भाषा में मुद्रित है । जिसे आम लोग आसानी से अध्ययन नहीं कर पाते हैं। महाविहार इस बौद्ध ग्रंथ को हिंदी में अनुवाद कर मुद्रित करने का निर्णय लिया है। इसकी अनुमति भारत सरकार से प्राप्त हो गई है।  यह हिंदी जगत के लिए क्रांतिकारी कदम से कम नहीं होगा। हिंदी में प्रकाशन होने के बाद यह सर्वसाधारण के लिए भी अनमोल होगा,  क्योंकि वह बुद्ध वचन को आसानी से जान व पढ सकेंगे।

      उन्होंने बताया कि इन कार्यों के निष्पादन में विश्वविद्यालय के कुलपति एम एल श्रीवास्तव  का अमूल्य योगदान है।

      कुलपति ने कहा कि बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक का देश और दुनिया में अप्राप्त होना असहज सा था। उन्होंने दावा किया कि देश में पहली बार महाविहार ने ही इस बौद्ध ग्रंथ का प्रकाशन कराया था। इसलिए उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर इस बौद्ध ग्रंथ को पुनर्मुद्रण कराने का निर्णय लिया और मात्र  पांच-छह महीने की अवधि में त्रिपिटक के सभी 41 खंडों का पुनर्मुद्रण कराया है।

      विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉक्टर श्रीकांत सिंह ने पुर्नमुद्रण के निर्णय और अल्प समय में पुनर्मुद्रण कराने के यह लिए कुलपति को कोटि-कोटि बधाई दिया है।

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