“सीएम नीतीश कुमार को मुगालता है कि वे जो सोचते-सुनते हैं, वही सच है। उनकी सबसे बड़ी समस्या रही है कि वे आयना देखना पसंद नहीं करते। जो कोई भूले-भटके दिखाने की कोशिश करता भी है, उसे दुश्मन मान लेते हैं। जबकि एक कड़वा सच है कि वे अब बिहार को संभालने में नकारा साबित हैं और अपने नकारेपन को छुपाने के लिए मीडियाई थेथरई पर उतर आए हैं…………”
-: एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क/मुकेश भारतीय :-
बिहार के सीएम नीतीश कुमार लगता है कि वे इन दिनों कहीं न कहीं काफी अपसेट हैं। उन्हें किसानों की सिंचाई की चिंता नहीं है, लेकिन पर्वत पर चेक डेम बनाने की बात करते हैं। वे जिस नालंदा की मिट्टी में पले बढ़े, उसके बुझे जलस्रोत की चिंता नहीं है, लेकिन वे राजगीर तक गंगा जल पहुंचाने की महात्वाकांक्षा पाल चुके हैं।
बिहार के चप्पे-चप्पे में उन्हीं के दल और पुलिस-प्रशासन तंत्र की माफियागिरी से शराबबंदी मजाक बन गई, लेकिन सीएम नीतीश की दलील तो देखिए कि होम डिलेवरी लेने वाले ही होम डिलेवरी शराब सप्लाई की बात करते हैं। उस पर तुर्रा यह कि बड़ी साफगोई से कहते हैं कि जिन्हें शराब चाहिए, वे बिहार न आएं और जिन्हें शराब पीनी है, वह बिहार छोड़ दें। यह तो वही बात हुई कि भाजपा के एक नेता बात-बात में पाकिस्तान जाने की रट लगाते रहते हैं।
जिस अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन नगरी राजगीर की वादियों से नीतीश जी को अथाह प्रेम हो चला है, वहीं एक नाबालिग छात्रा बिटिया के साथ जघन्य गैंग रेप की घटना को अंजाम दिया गया। उसकी कई वीडियो वायरल कर दिए गए।
मामले की सुगबुगुहाट के बाद पूरा पुलिस अमला उसे दबाने में जुट गया। इस मामले को जब एक न्यूज चैनल के रिपोर्टर ने उठाया तो सीधे एसपी ने उसे केस में फंसा देने की धमकी देकर मामले को दबाने का असफल प्रयास किया।
इसके बाद हमारी एक्सपर्ट मीडिया नेटवर्क की टीम ने गुगल लोकेशन, विभिन्न स्रोतों के जरिये घटनास्थल व पीड़िता के साथ पुलिस की अमानवीय कार्यशैली के बाद उनके परिजनों की स्वीकृति लेकर इस मामले को उजागर किया तो समूचा नालंदा पुलिस महकमा मुझे और हमारे स्थानीय रिपोर्टर को टारगेट कर पास्को एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया।
ऐसे निकम्मे अफसरों को यह भी मालूम नहीं है कि किसी रिपोर्टर या मान्याता प्राप्त प्रधान संपादक पर ऐसे मामले में पास्को एक्ट के तहत मुकदमा भी दर्ज होता है, जोकि सीधे राजगीर डीएसपी-नालंदा एसपी के निर्देश पर अकर्मण्य राजगीर इंस्पेक्टर-थानेदार ने किया। शुक्र है कि आज हमारी न्यायपालिका निपष्क्ष भूमिका में है और हमें न्याय मिला।
राजगीर बबुनी गैंग रेप मामले में नालंदा एसपी नीलेश कुमार, राजगीर डीएसपी सोमनाथ प्रसाद, राजगीर थानेदार-इंस्पेक्टर संतोष कुमार को सोनपुर मेला मेला-2019 में बड़े तामझाम से इस घोषणा के साथ सम्मानित किया गया कि घटना के 24 घंटे के भीतर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर मिसाल कायम की है। इसमें शामिल इंस्पेक्टर संतोष कुमार वहीं थानेदार है, जो शिकायत करने गए पीड़ित परिजन के सामने ठहाका लगाते हुए कहता है….“…..पहाड़ी पर करने क्या गई थी”
शायद बिहार पुलिस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ हो कि एक मासूम छात्रा संग गैंगरेप की वारदात को लेकर इतनी आनन-फानन में उन अफसरों को सम्मानित किया गया हो, जिन पर तुरंत कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए थी। लोकिन, कथित सुशासन में सबकुछ कथित ही होता है। सम्मान लेने वाले गदगद हैं। उनके अंदर शर्म की कोई भावना नहीं। चार्जशीट दाखिल करने और न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर स्पीडी ट्रायल शुरु होने के पहले ही पुलिस के विभत्सव चुनिंदा चेहरे को सम्मानित करने की सूची में शामिल कर दिया गया।
दरअसल, यह सब एक राजनीतक प्रोपगंडा के तहत किया गया। ताकि यह कहा जा सके कि हमारी पुलिस बेदाग है। उसकी सक्रियता पर कोई सबाल स्वीकार नहीं। यहां कोई इस पर उंगली उठाए, वर्दाश्त नहीं। जबकि सच तो यह है कि यहां सबसे बड़ी दुर्गति का कारण जातीय समीकरण और पैरवी के बल जमे मनमानी पर सदैव उतारु पुलिस तंत्र ही है। इसमें कुछ अच्छे लोग भी हैं, लेकिन प्राय्र चलती उन्हीं की है, राजनीतिक रसुख वाले हैं।
यह जघन्य वारदात 16 तारीख को घटित हुई थी। क्या पुलिस ने 17-18 तारीख तक सभी आरोपियों को दबोच लिया था? जबकि इस वारदात की एफआईआर 24 तारीख को उस समय दर्ज की गई, जब वीडियो वायरल हुई और मीडिया ने इसे निशाना पर लिया।
इसके बाबजूद पूरा पुलिस महकमा इसे कहीं और की वीडियो बताकर मामले की लीपापोती करने पर तुली थी। पुलिस ने मीडिया के एक बड़े वर्ग को मैनेज कर लिया। जो मैनेज नहीं हुआ, उसे धमकी दी। उसे फर्जी मुकदमें में फंसा दिया।
सोनपुर मेला-2019 में नालंदा एसपी को 3 मामलों में सम्मानित किया गया। दो मामलों में पुलिस कांस्टेबल से लेकर दारोगा, चालक तक का जिक्र था। लेकिन राजगीर बबुनी गैंगरेप मामले में आरोपियों की फर्जी त्वरित गिरफ्तारी में सिर्फ नालंदा एसपी, राजगीर डीएसपी, इंस्पेक्टर, आईओ के नाम का जिक्र किया गया। इसमें कोई पुलिसकर्मी की शागिर्दी नहीं रही। मानो सारे आरोपी एक साथ उन्हीं चार पुलिस अफसरों की गोद में चंद मिनटों में आ गिरे और पलक झपटते ही दबोच लिया गया। जबकि कुछेक मीडिया कर्मियों द्वारा उजागर करने के बाद लोग आक्रोशित होकर सड़क पर उतरे। प्रदर्शन करने लगे, तब पुलिस ने कार्रवाई की।
सीएम नीतीश बिटिया बचाओ-बिटिया पढ़ाओ का नारा देते हैं। लेकिन खुद वे ऐसे मामलों में गंभीर कभी नहीं दिखे। भाषणबाजी अलग चीज है और जमीनी हकीकत अलग। वे आत्ममुग्धता के शिकार है। यह बड़ी शर्मनाक स्थिति है कि एक सीएम राजगीर जाएं और एक डरी-सहमी-पीड़ित बिटिया से मिलने से भी परहेज करें। आखिर वे किस जमात की राजनीति की बात करते हैं। कौन सी बिटिया बचाओ की बात करते हैं?