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    Friday, April 19, 2024
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      बताईये सुशासन बाबू, नालंदा में जब ऐसे पढ़ रहे बच्चे तो कैसे सुधर रहा बिहार

      “जिस राज्य में बच्चे मिड डे मिल का बर्तन धोने तालाब में जाते हों वहाँ के बच्चे पढ़कर क्या बनेंगे ? सीएम साहेब, शिक्षा मंत्री, डीएम, एसडीओ, डीईओ और बीईओ आदि  रहनुमाओं और उनके करीदों से लोग जानना चाहते हैं कि आखिर ऐसे पढ़ेगें बच्चे तो कैसे बदल रहा बिहार?”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। राज्य सरकार अपने बजट का बीस प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है। बावजूद बच्चों को बेहतर शिक्षा नही मिल रही है। जिस राज्य में बच्चे बिना किताब पढ़े परीक्षा दे दें। उस राज्य के छात्रों का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा। वे ऐसी पढ़ाई पढ़कर क्या बनेंगे।nalanda education mdm3

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      जिस राज्य में शिक्षकों के लिए 11 बजे लेट नहीं तीन बजे भेंट नहीं कहावत आज भी लागू हो। जहाँ स्कूल कब खुलते है कब बंद होता है। कोई नहीं जानता हो।जिस राज्य में स्कूल की सारी जिम्मेदारी रसोईया पर हो उस राज्य का क्या होगा ?

      सीएम नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा के चंडी से एक ऐसी शर्मनाक तस्वीर देखने को मिल रही है, जहाँ बच्चे मिड डे का भोजन करने के बाद उस बर्तन को धोने के लिए गंदे तालाब का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं ।

      21 वीं सदी में भी आदिम दमनीयता का प्रतीक कह सकते हैं ।

      यह तस्वीर उस जिले की है जहाँ पिछले चार साल से डीएम त्यागराजन कमान संभाले हुए हैं, यह तस्वीर उस विधानसभा क्षेत्र हरनौत की हैं, जहाँ पिछले 35 साल से विधायक हरिनारायण सिंह हैं ।

      यह तस्वीर है चंडी प्रखंड के बेलक्षी पंचायत के मोकिमपुर प्राइमरी स्कूल की जहाँ छात्र पढ़ने के वजाय तालाब के गंदे पानी में अपने भोजन के झूठे बर्तन धोने को विवश है।

      पिछले शुक्रवार को चंडी प्रखंड के ही उत्क्रमित मध्य विधालय गंगौरा में मिड डे के बाद अपने झूठे बर्तन धोने गया एक छात्र खाई में डूबने से बच गया।

      बताया जाता है कि उक्त स्कूल का चापाकल खराब पड़ा है।

      अब सोचने वाली बात यह है कि जिन स्कूलों का चापाकल खराब पड़ा हुआ है वहाँ के प्रभारी हेडमास्टर अपनी जेब से पैसे खर्च कर चापाकल नहीं बना सकते हैं।nalanda education mdm1

      लेकिन स्कूल के भवन निर्माण में लूट मचाएगे, मिड डे मिल में छात्रों की उपस्थिति ज्यादा दिखाकर बंदरबाट करेंगे, सरकारी राशि में हेराफेरी कर सकते हैं लेकिन अपनी जेब से चापाकल नहीं बनबा सकते हैं ।

      यह तस्वीर सिर्फ़ एक स्कूल की नहीं है।अधिकांश स्कूलों में यही कहानी है। बच्चे या तो मिड डे मिल के बाद बर्तन धोने खाई, तालाब, नदी में या फिर घर जाते हैं ।

      सरकार एक तरफ स्कूलों में गुणवत्ता शिक्षा की बात करती है।लेकिन बच्चे क्या पढ़ रहे हैं यह सब जानते हैं ।इन बच्चों को खुद पता नहीं,आगे चलकर उनका भविष्य क्या होगा। जो सरकार, मंत्री, विधायक, पदाधिकारी नौनिहालों के भविष्य को इस तरह बेमकसद छोड़ दें, उसे इतराने का कोई हक नहीं है।

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