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    Tuesday, March 19, 2024
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      प्रेस क्लब रांची के चुनाव में पहले से बिछी है शतरंज, फिर भी प्रत्याशी फेंक रहे हैं जुमले

      रांची (मुकेश भारतीय)। संभवतः कल 27 दिसंबर को प्रेस क्लब रांची के चुनाव का वोटिंग होनी है। इसके लिये अध्यक्ष पद के 5, उपाध्यक्ष पद के 5, सचिव पद के 9, संयुक्त सचिव के 5, कोषाध्यक्ष पद के 5 और 10 सदस्यीय कार्यकारिणी पद के लिये कुल 39 प्रत्याशी  आपस में एक दूसरे से  खूब गुत्थमगुत्था करते नजर आ रहे हैं।

      यह चुनाव बतौर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सेवानिवृत जज विक्रमादित्य प्रसाद व उनकी टीम की देखरेख में काराई जा रही है। हालांकि ऐन चुनाव पूर्व सदस्यता अभियान में इनकी कहीं कोई भूमिका नहीं रही है। अगर होती तो तस्वीर कुछ और नजर आती।

      ranchi press club election 1इसमें कौन बाजी मारेगा, कौन ऐन वक्त पर किसके पक्ष में गुलाटी मारेगा या चारो खाने चित होगा, कहना बड़ा मुश्किल है। लेकिन इतना तो तय है कि परिणाम उसी तरह के सामने आयेगें, जैसी बिसात कथित रांची प्रेस क्लब के तदर्थ सदस्यता कमिटि के सदस्यों ने अपनी शतरंज पर बिछा रखी है।

      यह बात किसी से छुपी नहीं है कि सदस्यता अभियान के दौरान भारी अनियमियता बरती गई है। कार्यकारिणी के सभी सदस्यों ने खुद की खुन्नस के निशाने पर रखते हुये 200 से उपर आवेदनों को पेंडिंग मोड में डाल दिया। ताकि उन्हें चुनाव में हिस्सेदारी से अलग रखा जा सके। 

      कथित द रांची प्रेस क्लब या रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष बलबीर दत्त हों या फिर विजय पाठक, हरिनारायण सिंह, वीपी शरण, दिलीप श्रीवास्तव नीलू, अमरकांत, विनय कुमार, अनुपम शशांक, दिवाकर कुमार, प्रदीप कुमार सिंह, धर्मवीर सिन्हा, सोमनाथ सेन के आलावे रजत गुप्ता, किसलय जी, भुजंग भूषण आदि जैसे निर्णयकर्ता हों, किसी ने यह स्पष्ट नहीं किया किया कि जिन लोगों के सदस्यता आवेदन को बिना कारण बताये होल्ड के नाम पर पेंडिग मोड में डाल दिया गया, उसमें त्रुटियां कहां थी। और जहां दूसरी तरफ करीब 350 से उपर वैसे लोगों को सदस्यता प्रदान कर दी गई, जो न तो सक्रिय पत्रकारिता में हैं और न ही नियमावली के अनुरुप अहर्ताएं ही रखते हैं।

      जाहिर है कि वर्तमान में जो चुनाव कराये जा रहे हैं, उसमें लोकतांत्रिक स्वरुप कम और तानाशाही प्रवृति अधिक झलकती है। इस  चुनाव में  शामिल  कई युवा प्रत्याशी भी  संगत में उतने ही शातिर हैं, जितने कि उनके रिमोटधारी आका। कुछ हैं भी अच्छे तो  चुनाव जीतने के बाद उनकी कितनी चलेगी, सब जानते हैं। क्योंकि प्रमुख पदों पर वे ही लोग चुनावी बिसात जीतने की गोटी  पहले हीं सेट कर चुके हैं, जो कि रांची की मीडिया को गर्त में ढकेलने की  कभी कोई कोर कसर  नहीं छोड़ी है।

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज के पास कथित रांची प्रेस क्लब के तदर्थ सदस्यता कमिटि के प्रायः सदस्यों के ऑडियो क्लिप उपलब्ध हैं, जिसमें कमिटि के किसी भी रहनुमा ने पेंडिंग मोड पर होल्ड किये गये सदस्यता आवेदनों को लेकर कोई वजह नहीं बताई है। हर किसी ने सिर्फ यही कहा है कि वे इसके पक्ष में नहीं थे। फिर भी ऐसा कैसे हुआ? समझ से परे है।

      कथित द रांची प्रेस क्लब के निवर्तमान अध्यक्ष पद्मश्री बलबीर दत्त की बात काफी हैरानी करने वाली रही। एक बातचीत, जिसकी ऑडियो सुरक्षित है, उनका कहना है कि कथित रांची प्रेस क्लब के तदर्थ सदस्यता कमिटि के सदस्यों की बैठक में उन्हें नहीं बुलाया जाता है। बैठक के कुछ देर पहले उन्हें बैठक में शामिल होने की जानकारी दी जाती रही। ऐसे में उनके लिये बैठक में शामिल होना संभव नहीं होता है।

      हालांकि पद्मश्री दत्त की ऐसा बातें काफी रहस्यमय है। बिना अध्यक्ष की सहमति के कोई कमिटि नीतिगत निर्णय कैसे ले सकता है?  अगर ले सकता है तो फिर सब कुछ गुड़-गोबर होना लाजमि है।

      बहरहाल, जिस प्रेस क्लब की चुनाव की नींव ही कमजोर हो, उस पर एक मजबूत संगठन या पारदर्शी पदाधिकारी की उम्मीद कोई कैसे कर सकता है। खास कर उस परिस्थिति में जब पत्रकारों के हित में बड़े-बड़े जुमले फेंक कर चुनाव लड़ा जा रहा हो। उसमें अनेक ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो कथित रांची प्रेस क्लब की सदस्यता प्रदान करने के गड़बड़झाले में संलिप्त रहे हों।

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