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    Tuesday, April 23, 2024
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      पुलिस-पब्लिक फ्रेंडलीः एक कड़वा अनुभव

      वाकई सूबे में एक बहुत बड़ी बदलाव दिखी है। शायद पहले कभी नहीं। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ , सूबे में पुलिस तंत्र का। पुलिस इतना पब्लिक फ्रेंडली एवं ईमानदार कैसे हुई , आश्चर्य लगा।

      खैर इसके जो भी कारण हैं, चाहे वह पुलिस विभाग के बड़े अधिकारी हों या राजनेता। वे बधाई के पात्र है।

      reporter police 11मेरे साथ एक घटना हुई। जिससे लगता है कि बिहार में वाकई राम राज स्थापित हो गया। एक घाट पर ही शेर और बकरी को पानी पिलाया जा रहा है।

      गुरुवार 19 जुलाई को शाम करीब साढ़े सात बजे मैं अपने अन्य दो साथियों के साथ बिहार शरीफ स्थित श्रम कल्याण मैदान से एक कार्यक्रम में शरीक होकर हरनौत घर लौट रहा था।

      सोहसराय मोड़ के पास पुलिस के द्वारा वाहन चेकिंग की जा रही थी। मैंने देखा कि वहाँ मौजूद सिपाही के द्वारा बाइक सवारों से अपशब्द का प्रयोग करते हुए नाजायज रकम की बसूली की जा रही थी।

      किसी से सौ तो किसी से दो सौ। जिस पर मेरे द्वारा अपशब्द का प्रयोग नहीं करने को कहा गया। इसी क्रम में सोहसराय थाना के ईमानदार सिपाही, जो कमांडो का वर्दी पहने हुए थे, वाहन चेकिंग के दौरान मेरा बाइक को भी रुकवाया और कहा तुम क्यों बोले।

      जैसे ही मैं संवाददाता का परिचय दिया कि उसने कहा अच्छा आप प्रेस में हैं। तो चलिये ,बड़े साहब के पास। उसने खुद बाइक चलाते हुए हमें पीछे बिठाकर थाना ले गया। थाना में बड़े साहब के पास हाजिर किया।

      reporter police

      यह भी बता दें कि श्रम कल्याण मैदान में पेड़ काटे जाने के विरोध में गांधीगिरी करते हुए शोक सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें जिले के कई पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी एवं जिला के अधिकारी के साथ मैं भी शामिल हुआ था।

      मेरे द्वारा थाना में मौजूद अधिकारी को परिचय देने, प्रेस प्रमाण पत्र दिखाने,अन्य सामग्री दिखाने, बाइक का कागज दिखाने के बाबजूद भी पांच सौ रूप का चालान कटवाना पड़ा। हालांकि मैं अपना पक्ष मजबूत तरीके से रखा।

      reporter police 1खैर जो भी हो। पहले उन्होंने ग्यारह सौ रु देने की बात कहे,फिर अनुरोध करने पर पांच सौ के चालान काटने का आदेश दिया गया। पुलिस ने बहुत बड़ी ईमानदारी का परिचय देते हुए पांच सौ रु का चालान कटवाया।

      ये निश्चित ही आम लोगों के लिये एक बहुत बड़ा संदेश है। मैं मन ही मन पुलिस को टोकने का  गलती को स्वीकार किया,एवं भविष्य में ऐसी घटना न हो ,का भी संकल्प लिया।

      लेकिन दुर्भाग्य यह है कि जैसे ही मैं काटा गया चालान का पांच सौ रु का फाइन देकर थाना से बाहर निकला ,वही पुलिसकर्मियों को सोहसराय चौक पर सौ दो सौ लेकर कई बाइक को छोड़ते हुए फिर देखा।

      मैं असमंजस में पड़ गया और मन में सवाल उठा कि इतना जल्दी पुलिस बदल क्यों गई? सुशासन के सरकार में पुलिसिया राज के द्वारा आम आदमी कब तक भयादोहन का शिकार होता रहेगा…?

      देश का चौथा स्तम्भ यदि सही बोलता और लिखता है, तो उसे भी पुलिसिया रौब के सामने झुकने के लिये मजबूर  होना पड़ता है..!! इस सवाल का जबाब किसी यक्ष प्रश्न की तरह आज भी मेरे जेहन में पड़ा हुआ है। कोई तो जबाब होगा। धन्यवाद।

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