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    Friday, April 26, 2024
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      पुलिस-तंत्र के लिये बड़ा सबाल है जमादार जियाउल खान की मौत

      नालंदा जिले के बिहार थानान्तर्गत नीमगंज टीओपी प्रभारी जियाउल खान की मौत हीटर पर खाना बनाते कंरट लगने से हुई है या फिर किसी ने सुनियोजित षडयंत्र के तहत उनकी हत्या के बाद मामले को हादसा में तब्दील करने का कुप्रयास किया है। यह सब विभागीय पुलिस जांच का विषय हो सकता है, लेकिन उनकी मौत के बाद की जो तस्वीरें उभरकर सामने आई है, वह काफी झकझोरने वाली है।

       

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      इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि महरुम जियाउल खान के क्षुब्ध परिजनों ने पुलिस सलामी का समय दिये बिना शव को रात में अपने साथ समस्तीपुर के रोसड़ा गांव ले गये।

      पुलिस लाइन परिसर में पोस्टमार्टम के बाद शव घंटों पड़ा रहा लेकिन प्रभारी डीएसपी शव पर पुष्पांजलि देना भी गवारा न समाझा। एशोसिएशन वालों ने उनके परिजनों को 5 हजार रुपये नकद की सहायता दी।

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज को मिली जानकारी के अनुसार नीमगंज टोओपी दो दशक पहले बनाई गई थी। उस समय करीव दो दर्जन पुलिस जवान पदास्थापित थे।

      धीरे-धीरे उनकी संख्या कमती गई और अंततः एक जमादार बच गये। पिछले ढाई साल से जमादार जियाउल खान इस टीओपी के प्रभारी के तौर पर पदास्थापित थे।

      खान की मौत जिस खंडहरनुमा मकान के जर्जर कमरे में जिस अवस्था में हुई है, वह काफी पीड़ादायक है। सरकार या उसके किसी भी तंत्र ऐसी उम्मीद नहीं की सकती।

      पुलिस विभाग में एक वर्ग जहां सत्ता संरक्षण और अपनी धूर्तता से भोग-विलास में डूबा रहता है, वहीं दूसरे सिरे पर खड़ा सर्वहारा की श्रेणी में है। 

      इससे बड़ी दुर्भाग्य की बात क्या होगी कि जब प्रभारी जमादार की संदिग्ध अवस्था में मौत हो जाती है, तब आला अफसरों से लेकर संघ पदाधिकारियों को पता चलता है कि कहीं नीमगंज नाम का टीओपी भी कार्यरत है।nalanda police top system crime2

      अगर किसी को पहले से पता था तो फिर यह टीओपी पुलिस प्रबंधन की मिसाल है कि वहां सिर्फ एक शस्त्र विहिन जमादार हो, कोई सशस्त्र बल तो दूर एक चौकीदार भी संग न हो।

      बिहार थाना, जिसके अंतर्गत नीमगंज टीओपी आता है, वहां के थानाध्यक्ष या फिर पुलिस लाइन के सिरमौर से पूछा जाना चाहिये किसी टीओपी में मात्र यही मानव-संसाधन होता है।

      अगर नहीं तो फिर वहां स्वीकृत बल या संसाधन का कहां दुरुपयोग हुआ है या हो रहा है।

      पुलिस विभाग की सबसे बड़ी समस्या उसकी छद्म अनुशासन है। कोई भी अधीनस्थ उपर नजर उठा बात नहीं करते दिखता।

      सर्वत्र सिर्फ ‘सर सर’ की करताल होती है। यहां अनुशासन अपनी जगह है और सर उठा कर बात करना अपनी जगह।

      सबाल एक नीमगंज टीओपी या एक पुलिस जमादार की संदिग्ध मौत की नहीं है। असल सबाल पुलिस प्रबंधन द्वारा खुद गले में रस्सी डाल लेने की है। जिसके शिकार आये दिन उनके ही जवान हो रहे हैं। 

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