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    Wednesday, April 24, 2024
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      नालंदा मॉब लीचिंग: व्यवस्था के नकारेपन से भीड़ पागल हो रही है!

         “लोकतंत्र के इस शहर में,

           खो गया आदमी

           धर्म जाति का जहर

            पी सो गया आदमी

            कदम -कदम पर दहशतगर्दी

             इसको कौन मिटायेगा

           गांधी,नानक, बुद्ध कहाँ ?

          जो अब इनको समझायेगा !”

      पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज ब्यूरो)। जिस नालंदा के ज्ञान पर गर्व करता है बिहार, उसी नालंदा की धरती पर इन दिनों मॉब लिंचिंग जारी है। आएं दिन छोटी-छोटी घटनाओं को लेकर नालंदा की जनता हिंसक और उन्मादी बनती जा रही है। कानून का साथ देने के बजाय कानून को हाथ में लेने की परंपरा चल पड़ी है। पुलिस भी इन उन्मादी भीड़ तंत्र के आगे बेबस और लाचार दिखती है।

      नालंदा के बहुचर्चित मघडा मॉब लीचिंग की आग ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि जिले के इस्लामपुर में भीड़ तंत्र के हत्थे चढ़े तीन चोरों की बेरहमी से पिटाई कर दी ।लोगों की पिटाई से दो चोर की मौत हो गई, जबकि दोएक अन्य जीवन मौत से जूझ रहा है। इस घटना के एक दिन पहले भी बिहारशरीफ के बिजली कर्मी की पीटकर हत्या की खबर आई थी।

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      इससे पहले भी आएं दिन कई घटनाएँ होती रही है, जिसमें आरोपियों को बांधकर मारने पीटने या फिर उनकी हत्या तक कर देने की घटना तक शामिल है। कुछ साल पहले इसी तरह की उन्मादी भीड़ ने एक निजी स्कूल डायरेक्टर को मौत की घाट उतार दिया था।

      उस ह्दय विदारक घटना राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खिया तक बनी थी। मामला मानवाधिकार आयोग तक भी पहुंच गया था।

      पिछले कई साल से नालंदा भी मॉब लीचिंग घटना में शुमार होता जा  रहा है। सवाल यह उठता है कि इस तरह की घटना की बीच  आखिर अचानक इतने सारे लोग एक साथ एक ही मकसद से कैसे इकट्ठे हो जाते हैं।

      जब जनता (भीड़)पागल हो जाती है।उसका गुस्सा उसके सदाचार में आग लगा देता है।वह अपने  विवेक और तमीज में आग देता है। इसके पीछे कोई कारण समझ नहीं आता सिर्फ़ भीड़ चाल के सिवा।

      नालंदा के मघडासराय और इस्लामपुर की घटना को देखकर लगता है कि लोग भीतर से कितने भरे हुए हैं। गुस्से से भरे हुए हैं, तनाव से भरे हुए हैं, नाउम्मीदी से भरे हुए हैं।

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      भीड़ तंत्र के इस मानसिकता को समझने की कोशिश करिए भीड़ में से कईयों को तो पूरी घटना की जानकारी भी नहीं होगी कि आखिर इनका कसूर क्या है ? भीड़ इन पर क्यों टूट पड़ी है।

      शायद किसी एक ने पीटना शुरू किया, देखा देखी पीटने वालों की लाइन लग जाती है। हर गुजरने वाले लोगों ने इन चोरों पर अपना गुस्सा उतार दिया होगा, जो अंदर से भरे हुए थे।

      भीड़ में से किसी ने अपनी पत्नी से अनबन का गुस्सा इन चोरों पर उतार दिया होगा तो कोई अपने पड़ोसी के साथ झगड़े का गुस्सा तो किसी युवक ने अपनी बेकारी का गुस्सा यहां उतार दिया होगा।

      पहले लात थप्पड से तो फिर लाठी डंडे से।फिर अंत में एक चोर की मौत पर पता नहीं इन भीड़ तंत्र में शामिल कितने लोगों की  आत्माएं ठंडी हो गई होंगी। चोर की मौत पर आखिर उनका गुस्सा उतर गया होगा।

      “दरअसल जनता को आदत सी गई है कहीं का गुस्सा कहीं का निकालने का, वो भी बिना मकसद…”

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      अगर पुलिस नहीं आती तो भीड़ सभी चोरों की जीवन लीला समाप्त कर ही दम लेती। यहां तो पुलिस नहीं थी। लेकिन मघडा सराय की घटना में तो पुलिस की मौजूदगी में भीड़ तंत्र बिना किसी डर भय के आरोपी को घर से खींचकर पीट रही थी।

      ऐसी घटनाओं से जनता को क्या मिल जाता है।आरोपी को पकड़ कर पुलिस के हाथों सुपुर्द करने की जगह खुद कानून को हाथ में लेना कहाँ का न्याय संगत दिखता है। ऐसी घटनाओं से आखिर किसी को क्या मिल जाता है।

      नालंदा में मॉब लीचिंग की घटना में भीड़ तंत्र का न्याय आने वाले समय में कितना खतरनाक मोड़ लेगा, इसको समझना होगा, इस पर लगाम लगाने की जरूरत है।

      देखा जाए तो भीड़ का मनोविज्ञान सामाजिक विज्ञान का एक छोटा-सा हिस्सा रहा है। यह एक अजीब और पुराना तरीका है, जिसकी प्रासंगिकता समाज में स्थिरता आने और क़ानून-व्यवस्था के ऊपर भरोसे के बाद ख़त्म होने के बाद दिखता है।

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