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    Wednesday, April 24, 2024
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      टूटी सारी मिथ्या, लहर विहीन हुई लोकाईन, सूखे पड़े खेत, किसानों में हाहाकार

      ” हिलसा तथा आसपास के किसानों की सबसे बड़ा कारण वाटर बीयर की आड़ में नदी मुहाने का मुंह बंद कर देना है। बराज निर्माण के दौरान हिलसा तथा उसके आसपास के इलाके में पानी की धार को पहुंचाने वाले नदी मुहाने के मुंह को बंद कर दिया गया।”

      हिलसा (चन्द्रकांत)। वर्षों पुरानी मिथ्या इस बार भी टूट गयी। अब तक लोकाईन नदी में पानी की लहर नहीं पहुंची। हिलसा के किसानों में पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ। नदियों के सूखी रहने से खेत भी सूखा पड़ा है। आने वाले दिनों में लोगों के हलख भी सूखने के आसार बढ गए।

      hilsa lokain 1फल्गु की शाखा नदी लोकाईन हिलसा तथा आसपास के इलाकों के लिए संजीवनी बूटी की तरह काम करते रहा है। कभी-कभार पानी ज्यादा आने से कुछ गांवों को लोकाईन की तबाही का दंश पड़े, लेकिन एक बड़ा तबके पानी की संकट से निजात मिलता रहा है।

      पिछले दिनों के इतिहास रहा कि फल्गु की शाखा लोकाईन नदी में हर साल जून के 15 से 29 तक पानी आ जाया करता है। इसी इतिहास को याद कर प्रभावित इलाके के लोग उक्त निर्धारित तिथि से पहले ही सतर्क हो जाया करते थे।

      कभी लोकाईन में उक्त निर्धारित तिथि को पानी आ जाने का बना इतिहास पिछले कई सालों से टूटते रहा है और इस बार भी टूट कर ही रह गया। पानी नहीं आने से लोकाईन में उमड़ती-घुमड़ती पानी की लहरों के बदले बालू की रेत हवा में उड़ रही है। पानी को लेकर किसानों में हाहाकार मचा हुआ है।

      हिलसा तथा आसपास के इलाके में धान की रोपनी मुश्किल हो गई। हाल के दिनों में हुई हल्की बारिश से किसानो में थोड़ी आस जगी लेकिन सूर्य तेज तपिश इस आस पर भी पानी फेर दिया। पानी की कमी के कारण खेत सूखी पड़ी खेतों में चाहकर भी किसान हल चलाने को तैयार नहीं हो रहे।

      लोकाईन में पानी नहीं आने से जमीन के अंदर के पानी का लेयर काफी नीचे चला गया है। खेतों के पटवन के लिए बघार में लगा बोरिंग फेल हो रहा है। इतना ही नहीं पानी के लेयर कम होने से घरों में लगे चापाकल भी पानी कम देने लगा है। ऐसी स्थिति रही तो खेतों के पटवन तो दूर लोगों को प्यास बुझाने के लिए पानी के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी।

      उदेरास्थान में बराज बनने के बाद से ही परेशान हैं किसान

      फल्गु नदी में आने वाले ऊफान से होने वाली तबाही को लेकर तत्कालीन सरकार द्वारा जहानाबाद जिले उदेरास्थान में बराज का निर्माण कराया गया। सरकार की मंशा तबाही को बंद करने के साथ-साथ हर इलाके के किसानों को पटवन के लिए सीमित पानी उपलब्ध कराना था।

      बराज बनाए जाने की सरकार की मंशा को सबों ने सरहा लेकिन बराज बनने के बाद कुछेक को छोड़ अधिकांश इलाके के किसान नाराज हो गए। ऐसे किसानों में ज्यादा संख्या हिलसा अनुमंडल के किसानों की थी।

      शुरुआती दौर में किसानों ने विरोध जताया तो ह्यूम पाईप के जरिए पानी देने की न केवल भरोसा दिया गया बल्कि ह्यूम पाईप लगा भी दिया गया। जैसे ही बीयर निर्माण अंतिम चरण में पहुंचा बालू के ढेर से ह्यूम पाईप को भर दिया गया।

      नदी मुहाने के मुंह बंद हो जाने से खास कर हिलसा इलाके पूर्वी भाग में पानी की घोर किल्लत हो गयी। कभी बेसुमार पानी से तबाह होने वाले किसान खेतों के पटवन के लिए तरसने लगे। स्वार्थहित में राजनैतिक हस्तक्षेप के बाद उत्पन्न की गई तकनीकी बाधा का यह दंश हिलसा के किसान सत्तर के दशक से ही झेलने को मजबूर हो रहे हैं।

      लोकाईन में इच्छानुसार ही छोड़ा जाता है पानी

      नदी मुहाने का मुंह बंद करने के बाद फल्गु नदी में उदेरा स्थान में बनाए गए बीयर से लोकाईन में भी इच्छानुसार ही पानी छोड़ा जाता है।

      बताया जाता है कि फल्गु में पानी आने पर सबसे पहले बीयर तथा उसके आसपास के इलाके में केनाल से पानी दिया जाता है। उस इलाके में जब तक पानी की पूर्ति नहीं हो जाती जब तक लोकाईन की ओर पानी छोड़ा ही नहीं जाता। इसके लिए बीयर के निकट बजाप्ता बड़े-बड़े गेट के अलावा छोटे-छोटे कई फाटक लगा दिए गए हैं।

      तंग किसानों ने 17 साल पहले किया था सत्याग्रह

      फल्गु नदी पर उदेरा स्थान के निकट बनाए गए बीयर से तंग हो चुके हिलसा तथा आसपास के किसान 17 साल पहले वर्ष 2001 में निजात के लिए सत्याग्रह आंदोलन किया था।

      हिलसा के समाजसेवी साधुशरण सिंह एवं रामानंद सिंह की अगुआई में नदी मुहाने-नोनाई संघर्ष समिति के बैनर तले कुंडवापर शुरु हुआ सत्याग्रह लंबे दिनों तक चला। उस समय बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे सुशील कुमार मोदी भी सत्याग्रह में शरीक हुए थे।

      तब सुशील मोदी ने किसानों की मांग को जाएज ठहराते हुए निजात के लिए विधान सभा में आवाज बुलंद की। किसानों का सत्याग्रह आंदोलन रंग लाया। सरकारी मुलाजिम सत्याग्रह स्थल पर पहुंचे और बीयर की जगह बराज बनाकर समस्या के निदान का भरोसा दिया था।

      बराज बना पर दूर नहीं हुई समस्या

      किसानों के संघर्ष के एक लंबे अर्से बाद फल्गु नदी में बीयर की जगह बराज बना, लेकिन समस्या जस की तस बनी रह गई। पिछले माह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नवनिर्मित बराज का लोकार्पण भी कर चुके।

      सत्याग्रही किसान साधुशरण सिंह एवं रामानंद सिंह की मानें तो बराज का निर्माण खिजरसराय से कुंडवापर तक किया जाना था। सरकार के तकनीकी पदाधिकारी किसानों के हितों को ध्यान में नहीं रखा। बराज की दूरी कम कर दी। जिस मंशा से बराज बनाया गया उसके सफलीभूत होने की संभावना क्षीण है।

      कई स्वरुपों व नामों में हिलसा से गुजरती है फल्गु

      गया से निकलने वाली फल्गु नदी हिलसा के इलाकों से कई स्वरुप व नामों से गुजरती है। फल्गु नदी से निकलने वाली नदी हिलसा में सबसे बड़ा स्वरुप में लोकाईन के नाम से चर्चित है। इसके अलावा मुहाने-नोनाई, जलवार, महतमाईन, कररुआ, लिबड़ी एवं ककड़िया नदी के रुप में जाना जाता है।

      जल आंदोलन के मूड में हिलसा के किसान

      पानी की समस्या से जूझ रहे हिलसा के किसान अब जल आंदोलन का मूड बना रहे हैं। इस आशय की जानकारी पविरवा में जन्मे व पले-बढे भाजपा नेता ब्रजनेश कुमार विद्यार्थी ने दी।

      उन्होंने बताया कि लोकाईन में पानी आने से किसानों को पटवन की समस्या एक हद तक दूर हो जाती थी। फल्गु में बराज बनाए जाने से लोकाईन में पानी बिल्कुल ही बंद हो गया। अब पानी तभी आएगा जब फल्गु ऊफान पर रहेगी। ऐसी स्थिति में किसानों के समक्ष खेती करना एक बड़ी समस्या हो गई। किसानों को एकजुट कर जल आंदोलन की तैयारी का प्रयास शुरु कर दिया गया।

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