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    Wednesday, April 24, 2024
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      ‘गांधी कल, आज और कल’ विषय पर विचार-संगोष्ठीः आज भी प्रासंगिक हैं गांधी

      बिहार शरीफ (संजय कुमार)। जैसे-जैसे दुनिया में हिंसा, आर्थिक विषमता, बेरोजगारी, आतंकवाद, सांप्रदायिकता व नफरत का माहौल बढेगा, वैसे- वैसे गांधीजी के विचारों एवं उनके दर्शन की प्रसांगिकता बढ़ती जाएगी।

      चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में बिहारशरीफ के गांधी मैदान में मंगलवार को “गांधी– कल, आज और कल” विषय पर आयोजित विचार-संगोष्ठी में बुद्धिजीवियों ने उक्त बातें कहीं।

      कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मानवतावादी डॉ. नालंद गोपाल ने कहा कि गांधीजी मानव समाज के सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिबद्ध थे। इसकी झलक उनके विचारों में मिलती है।

      gandhi 1उनका मानना था कि हिंसा और मानव- निर्मित घृणा से ग्रस्त समाज में शांति- सद्भावना एवं सहअस्तित्व लाने के लिए तथा सभी प्रकार के विवादों के हल के लिए सत्य एवं अहिंसा के मार्ग का अनुसरण ही एकमात्र उपाय है।

      वर्तमान माहौल में समाज में जिस तरह का वातावरण उत्पन्न हो रहा है एवं मानव -मानव के बीच की खाई बढ़ती जा रही है, गांधीजी के बताए रास्ते पर चलने की जरूरत और बढ़ती जा रही है ।

      साहित्यकार डॉ हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी ने कहा कि गांधीजी सामाजिक विषमता के घोर विरोधी थे। चंपारण सत्याग्रह के क्रम में उन्होंने लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए कई व्यवहारिक प्रयोग भी किए।

      स्वच्छता तथा स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक किया। छुआछूत जैसी बुराई को जड़ से मिटाने का आवाहन भी किया। जिस कार्य को सरकार आज कर रही है, उन सारे कामों को गांधी जी ने 1917 में ही शुरु कर दिया था। यह चंपारण ही था,जिसने मोहनदास को महात्मा गांधी बनाया।

      शायर बेनाम गिलानी ने कहा कि गांधी जी साध्य की प्राप्ति में साधन की पवित्रता पर बहुत जोर देते थे। उनका यह कहना था कि इस संसार में हमारी जरूरत को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन हैं, पर इससे हमारी लालच की पूर्ति नहीं हो सकती। गरीबी धन की अनुपस्थिति नही बल्कि लालच की उपस्थिति का नाम है।

      समाजसेवी आशुतोष मानव ने कहा कि बिना जनसेवा किए राज्यसत्ता प्राप्ति की सीढ़ी के रूप में आज जाति एवं धर्म का राजनितिक रूप से इस्तेमाल होने लगा है। इससे समाज में मानव– मानव के बीच की दूरी बढी है। सांप्रदायिक भावनाओं के उदय का भी एक बहुत बड़ा कारण यही है।

      गांधीजी के विचारों पर अमल करके ही समाज में प्रेम ,भाईचारा और सौहार्द का वातावरण बनाया जा सकता है। गांधीजी सर्व धर्म समभाव की जीती जागती मिसाल थे।

      उनका मानना था कि हिंसा किसी भी समस्या का स्थाई एवं संपूर्ण समाधान नहीं है। वर्तमान में चल रहे विश्व के घटनाक्रम से उनके इस विचार की पुष्टि होती है।

      वक्ताओं ने कहा कि गांधी जी ने जो कुछ भी कहा, उसे अपने व्यवहार में अपनाया। गांव-घरों में व्याप्त गंदगी को दूर करने के लिए उनका स्वच्छता अभियान, सामाजिक सद्भाव के लिए सामूहिक प्रार्थना तथा लोगों में आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए चरखा एवं अन्य कुटीर उद्योगों के प्रोत्साहन संबंधी उनके कार्य आज भी प्रसांगिक हैं।

      गांधी जी मानते थे कि धर्म एवं सांप्रदायिकता दोनों अलग-अलग हैं। एक दूसरे के विरोधी हैं। सांप्रदायिक व्यक्ति कभी धार्मिक नहीं होता, वह धार्मिक होने का ढोंग करता है।

      इसी प्रकार धार्मिक व्यक्ति कभी सांप्रदायिक नहीं हो सकता धार्मिक भावना का राजनीतिक शोषण ही सांप्रदायिकता है। जिस तरीके से समाज में सांप्रदायिक भावना का विस्तार हो रहा है ,गांधी जी के विचार एवं मूल्य पर चलना अब बेहद जरूरी हो गया है।

      डीपीआरओ लालबाबू ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा शराबबंदी, महिला सशक्तिकरण, दहेज प्रथा एवं बाल विवाह निषेध, पंचायती राज व्यवस्था को सशक्तिकरण करने संबंधी कार्य, गांधी जी के विचारों का ही व्यवहारीकरण है।

      गांधीजी के विचारों की महत्ता आज इतनी बढ़ गई है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा के दिवस के रूप में स्वीकार किया है। दुनिया के नेताओं में गांधीजी का प्रभाव आज भी सबसे अधिक है।

      गांधीवादी दीपक कुमार ने गांधी जी को राजनीति, साहित्य संस्कृति, धर्म, दर्शन व विज्ञान का अद्भुत मनीषी एवं बहुत बड़ा मानवतावादी बताया। दुनिया में कहीं भी शांति मार्च निकालना हो, अत्याचार या हिंसा का विरोध किया जाना हो, गांधीजी पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें सबसे पहले याद किया जाता है।

      इनके मूल्य एवं विचार जाति- वर्ग या देश की सीमा से ऊपर हैं और यह सिर्फ भारत के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए सबसे अधिक और सर्वकालिक प्रसांगिक व्यक्ति हैं।

      कार्यक्रम में नालंदा नाट्य संघ के इन कलाकारों ने गांधी जी के प्रिय भजन को गाया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन साहित्यप्रेमी राकेश बिहारी ने किया।

      इस अवसर पर राम सागर राम, राकेश रितुराज, उमेश प्रसाद उमेश ,राकेश बिहारी ,बेनाम गिलानी, सतनाम सिंह,भारत मानस, रामअवतार कुशवाहा, बलवंत, कुंदन ,शेखर, आशीष,आकाश, ज्योत्स्ना, मुस्कान चांदनी, राजीव रंजन पाण्डेय, अमन, धीरज, पुणेश्वर कुमार, सुधीर, राकेश बहादुरपुरी, राजेश ठाकुर, लक्ष्मीचंद आर्य आदि बुद्धिजीवी उपस्थित थे।

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