“वेशक भारत एक खुबसूरत लोकतांत्रिक देश है और इसके सौंदर्य को बरकरार रखने का अधिक भार न्यायपालिका और मीडिया पर है। लेकिन कुछेक लोग आए दिन अपनी नीजि मानसिकता से दोनों के सम्मान को ठेंस पहुंचा जगहंसाई रहे हैं…”
खबर है कि मुजफ्फरपुर जिले के एसडीजीएम कोर्ट में कोरोना वायरस के फैलते प्रकोप को लेकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत में चीन के राजदूत वेई डोंग के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
दोनों पर कोरोना वायरस को फैलाने का आरोप लगाया गया है। अधिवक्ता सुधीर ओझा ने परिवाद दर्ज कराया है।
कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए सुनवाई की अगली तिथि 11 अप्रैल को रखी है। परिवादी ने आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस बनाकर इसे फैलाकर पूरे विश्व को डराना और दहशत में डालना है. आईपीसी की 269,270,109,120 B के तहत परिवाद दर्ज कराया है।
परिवादी सुधीर ओझा की दलील है कि जानबूझकर साजिश के तहत चीन ने वायरस बना कर पूरे विश्व को दहशत करने का काम किया है, जिसको लेकर आज मुजफ्फरपुर के कोर्ट में परिवाद दर्ज कराया है, जिसे कोर्ट ने स्विकार करते हुए सुनवाई की अगली तिथि 11 अप्रैल 2020 रखी है।
सबाल उठता है कि भारत के निचली अदालत में चीन-अमेरिका-इंगलैंड-पाकिस्तान आदि देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति या उसके राजदूत पर अपराधिक मुकदमा दर्ज हो सकता है, ऐसी ज्ञान रखने वाले अधिवक्ता भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद-धारा की विशेष अध्ययन किया है।
माननीय न्यायालय को भी ऐसे मामलों में कड़ाई से संज्ञान लेने की जरुरत है। हालांकि न्यायालय में हर मामला की सुनवाई बाद खारिज करने की परंपरा बन गई है। लेकिन सबसे शर्मनाक स्थिति मीडिया की है, जो ऐसे ‘स्वज्ञानी’ की कवरेज बीबीसी तक करती है। न्यूज चैनलों के ज्ञानियों का तो भगवान ही मालिक है। अपना चिंघाड़े जाते हैं।