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    Thursday, March 28, 2024
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      खत्म हो पाएगी अनील सिंह का राजनीतिक वनवास?

      “न जाने किस भंवर में है जिंदगी। ठहाके मौन है, गायब है हंसी। नहीं परछाइंया तक साथ देती, इसी का नाम शायद बेबसी है……”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। किसी कवि की यह पंक्तियाँ विलोपित चंडी विधानसभा के पूर्व विधायक अनील सिंह पर अक्षरश: सटीक बैठती है।

      पिछले दो दशक से राजनीतिक हाशिए पर चल रहे और राजनीतिक वनवास झेल रहे पूर्व विधायक अनिल सिंह का राजनीतिक सूखा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।

      anil singh 1पिछले विधानसभा चुनाव में बड़े अरमान के साथ अपने लाव -लश्कर के साथ बीजेपी में शामिल हुए थे। वे भाजपा में इस आशा एवं विश्वास के साथ शामिल हुए थे कि ‘भगवा रंग’ उनके जीवन को रंगीन कर दे।

      हरनौत से उन्हें टिकट मिलने की प्रबल संभावना दिख रही थी। लेकिन ऐन मौके पर लोजपा अपने खाते में सीट ले गई। पूर्व विधायक की किस्मत एक बार फिर दगा दे गई ।

      पूर्व विधायक अनिल सिंह पिछले 19 साल से अपने राजनीतिक भंवर को खत्म करने में लगें हुए हैं। उन्होंने कई बार जदयू में वापसी करना चाहा लेकिन जदयू की नजर में वे ‘अछूत’ बने हुए रहे।

      जदयू से ठुकराये जाने के बाद अपने राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए एकमात्र विकल्प भगवा बिग्रेड ही बचा था, लेकिन यहां भी उनकी दाल नहीं गली।

      चंडी विधानसभा से पांच बार विधायक और पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामलाल सिंह के पुत्र अनिल सिंह ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उनके निधन के बाद 1983 में विधानसभा उपचुनाव में अपनी किस्मत आजमाई लेकिन उन्हें अपने पिता की मौत का सहानुभूति लहर भी काम नहीं आई।

      उन्हें 1985 में पहली बार सफलता हाथ लगी। 1990 में फिर उन्हें हार का सामना करना पड़ा। बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर समता पार्टी में शामिल हुए जहाँ उन्होंने 1995 में चुनाव जीतकर वापसी की।

      anil singh 3इसके बाद से इनका राजनीतिक अस्तित्व खतरे में पड़ गया।बाद में राजद छोड़ कर समता पार्टी में आएं हरिनारायण सिंह को टिकट मिल गया। इसके बाद अनिल कुमार सिंह राजद, एनसीपी, रालोसपा आदि दलों की परिक्रमा करते रहे।

      विधानसभा से लेकर लोकसभा तक किस्मत आजमाई लेकिन किस्मत हर बार दगा ही दे गई। बाद में उन्होंने भाजपा का दामन थामा। लेकिन यहाँ भी उनका कद नही बढ़ा।

      पिछले 19 साल से पूर्व विधायक की राजनीतिक अस्थिरता खत्म नही हो रही है। अपने पिता की राजनीतिक विरासत को को संभालने की जद्दोजहद में लगे पूर्व विधायक का अगले विधानसभा चुनाव में ठिकाना कहाँ होगा, कहां नहीं जा सकता है।

      लेकिन राजनीतिक संभावनाओं का है। यहां कुछ भी हो सकता है।कहा जा रहा है कि पूर्व विधायक अनिल सिंह प्रशांत किशोर के संपर्क में बने हुए हैं।

      जदयू में वापसी ही उनका राजनीतिक भाग्य बदल सकता है। आगामी विधानसभा चुनाव उनके राजनीतिक जीवन का आखिरी दशा और दिशा तय करेगा।

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