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    Saturday, April 20, 2024
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      किशोर न्याय परिषद ने हत्यारोपी 2 किशोर को दी 3 साल आवासीत की सज़ा

      पुलिस का साक्ष्य सबूत का अंतिम पर्याय टुकड़ा नहीं है। भा.साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत केवल उसके पूर्व के बयान की ओर साक्षी का ध्यान आकर्षित कर खंडन करने के प्रयोजन से प्रयोग में लाया जा सकता है। दंडिक विधि में “एक झूठ-सब झूठ” का सिद्धान्त लागू नहीं होता………”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। नालंदा जिला किशोर न्याय परिषद के प्रधान न्यायिक दंडाधिकारी सह न्यायकर्ता मानवेन्द्र मिश्र ने राजद नेता अरुण कुमार उर्फ कल्लू मुखिया के पुत्र अंकित कुमार उर्फ मंकू की हत्या के दो आरोपी किशोर को दोषी करार देते हुए तीन वर्ष पर्यवेक्षण गृह में आवासीत करने की सजा सुनायी है।NALANDA supervision house

      साथ ही आरोपियों द्वारा न्यायिक अभिरक्षा में बितायी गयी अवधि को इस सजा में मुजरा करने का भी आदेश दिया है।

      अभियोजन पक्ष से अभियोजन पदाधिकारी राजेश पाठक व जयप्रकाश ने बहस व पांच साक्षियों का सुनवाई के दौरान परीक्षण कराया। इस मौके पर सदस्य धर्मेन्द्र कुमार भी उपस्थित थे।

      प्रधान न्यायिक दंडाधिकारी श्री मिश्र ने अपने फैसले में कहा है कि पूर्व ज्ञान के साथ जो किशोर आपराधिक कार्य करेगा, उसे सजा जरूर मिलेगी।

      उन्होंने पर्यवेक्षण गृह अधीक्षक को आवासन के दौरान किशोर अपराधियों को पढ़ाई, कौशल विकास की व्यवस्था, मनोवैज्ञानिक रूप से काउंसिलिंग एवं उसकी प्रगति रिपोर्ट भी प्रत्येक चार माह पर किशोर न्याय परिषद को सौंपने का निर्देश दिया गया है।

      किशोर न्याय परिषद द्वारा यह सजा करीब 1 साल 5 माह में सुनायी गयी है। इस मामले में पांच आरोपित किये गये थे। जिसमें से दो आरोपी शैक्षणिक प्रमाण पत्र आदि के आधार पर किशोर पाये गये और इनका मामला किशोर न्याय परिषद में चला। अन्य का केस चिल्ड्रेन कोर्ट में चल रहा है। जिनकी उम्र 16 साल से अधिक है। 

      विगत 21 जून 2018 को अंकित अपने चचेरे भाई, जो मामले का सूचक भी है, उसके साथ घर से शाम करीब 4.30 बजे श्रम कल्याण मैदान में स्कूटी से गया था। वह वहां क्रिकेट खेल रहा था।

      इसी बीच विधि विरुद्ध किशोर वहां पहुंचा और स्कूटी की चाभी मांगने लगे। नहीं देने पर आरोपी किशोरों ने हाथ में नुकीली हथियार को मृतक के आंख और कपाल में घोप दिया।

      मारपीट के दौरान साथ रहे चचेरे भाई ने फोन से मृतक के पिता को इसकी जानकारी दी थी। इलाज के लिए पहले निजी क्लीनिक ले गये थे। बाद में सदर अस्पताल लाया जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था।

      बचाव पक्ष की थी दलील…..

      अचानक लड़ाई में पूर्व चिंतन के बिना किया गया कृत्य हत्या की श्रेणी में नहीं आता है।

      मृतक के पिता ने घटना घटित होते स्वंय अपने आंखो से नहीं देखा। अतः उनके साक्ष्य का कोई महत्व नहीं।

      अनुसंधानकर्ता स्वंय साक्ष्य देने न्यायालय में नहीं आए। अनुसंधानकर्ता ने घटनास्थल के साक्षियों का साक्ष्य नहीं लिया।

      पुलिस ने घटनास्थल से खून लगे कपड़े, मिट्टी, हथियार आदि कुछ भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया।

      लेकिन यह रहा इस फैसला का आधार….

      SATYMEV JAYTE 1किशोर न्याय परिषद ने यह माना कि विधि विरुद्ध किशोर का कृत्य हत्या की श्रेणी में आता है।, क्योंकि निहत्थे व्यक्ति पर घातक हथियार का प्रयोग किया गया और इस ज्ञान से प्रहार किया गया कि उससे मृत्यु कारित होने की संभावना थी।

      मृतक के पिता ने भले ही घटना को अपनी आंखो से नहीं देखा। किन्तु उन्हें फोन से प्रत्यक्षदर्शी साक्षी ने सूचना दी और जब वे पहुंचे तो पुत्र को मृत पाया। ये सब एक ही संव्यवहार का भाग मानते हुए न्यायालय ने इसे संपोषक साक्ष्य के रुप में सही माना।

      पुलिस का साक्ष्य सबूत का अंतिम पर्याय टुकड़ा नहीं है। भा.साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत केवल उसके पूर्व के बयान की ओर साक्षी का ध्यान आकर्षित कर खंडन करने के प्रयोजन से से प्रयोग में लाया जा सकता है।

      पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृत्यु समीक्षा रिपोर्ट एवं प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के साक्ष्य में कोई विरोधाभाष नहीं है।

      दंडिक विधि में “एक झूठ-सब झूठ” का सिद्धान्त लागू नहीं होता।

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