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    Saturday, April 20, 2024
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      एक अफसर का कितना मुश्किल-आसान है ईमानदार बने रहना

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क।  अमूमन अधिकारियों से ईमानदार बने रहने की अपेक्षा की जाती है। कई अधिकारी भी वास्तव में नौकरी ज्वाइन करने से पहले इतने उत्साह से लबरेज रहते हैं, मानो नौकरी पाने के बाद वो आसमान के तारे तोड़ देंगे।

      लेकिन यह भी एक यक्ष प्रश्न है कि आखिर नौकरी के 2-4 साल के अंदर ही उनका सारा उत्साह काफूर क्यों हो जाता है? क्यों वे सिस्टम के साथ समझौता कर लेते हैं?

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      आलेखकः सुबोध कुमार बिहार प्रशासनिक सेवा के उप सचिव स्तर के पदाधिकारी हैं और सामाजिक और प्रशासनिक सुधारों को लेकर विमर्श में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं……

      या यूँ कहा जाए कि क्यों बेरोजगार रहते जो उनको भ्रष्टाचार लगता था, वही अब उनको शिष्टाचार लगने लगता है। क्यों उनमें निराशा की भावना घर कर जाती है? और उनका एकमात्र उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाना ही रह जाता है??

      ? किसी अधिकारी के लिए ईमानदार बने रहना भी कोई आसान काम नहीं है। ईमानदार लोगों को कई झंझावातों से गुजरना पड़ता है।

      ? अगर कोई अधिकारी ईमानदार है तो सबसे पहले माफियाओं को उससे कष्ट होगा। साथ ही उसके अधीनस्थ कुछ कर्मियों को भी उससे शिकायत रहेगी। कई मामलों में उसका अधीनस्थ कर्मी ही माफिया के प्रभाव में अधिकारी को उलझा देगा।

      आइए देखते हैं कैसे उलझा देगा?

      ? जो माफिया के प्रभाव वाला कर्मी है, वह ऑफिस की सारी गुप्त जानकारी बाहर माफिया को देगा ही देगा। माफिया अधिकारी के किसी भी आदेश/कृत्य का अपने हिसाब से व्याख्या करेगा और भाड़े पर लाए गए टट्टुओं से अधिकारी के विरुद्ध नारे लगवा कर/प्रदर्शन करवा कर उसकी छवि को धूमिल करने का प्रयास करेगा।

      यहां तक कि माफिया अपने प्रभाव वाले मीडिया के लोगों को मैनेज कर अधिकारी के विरुद्ध प्रिंट/इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दुष्प्रचार भी करवाएगा।cruption 1

      ? इतने से भी बात नहीं बनी तो अपने किसी पिट्ठू से RTI के माध्यम से पुराना-पुराना सूचना मंगवाएगा जो उसको पहले से ही मालूम रहता है कि वह सूचना कार्यालय में उपलब्ध नहीं है, क्योंकि ऑफिस  के ही कुछ कर्मी माफिया को सब कुछ पहले से ही बता के रखते हैं।

      सूचना उपलब्ध होगी भी तो उसको ऑफिस से गायब करवा देगा और सूचना ऐसी मांगी जाएगी जो  अधिकारी को असहज करे। यकीन मानिए कि माफिया अधिकारी का राज्य सूचना आयोग तक पिंड नहीं छोड़ेगा।

      उसका आशय सूचना पाना कम, अधिकारी को नीचा दिखाना ज्यादा होता है ताकि अधिकारी के मनोबल को तोड़ा जा सके। अब प्रश्न उठ सकता है कि कुछ अधीनस्थ कर्मी ऐसा क्यों करेंगे?

      ? उत्तर यह है कि कुछ लोग रिश्वत को अपना जन्मजात अधिकार समझते हैं और माहवारी रिश्वत के बंधे-बँधाए राशि पर किसी अधिकारी द्वारा रोक लगाने को अपने पेट पर लात समझते हैं।

      ? अगर अधिकारी किसी जांच के लिए क्षेत्र में निकले हों तो भाड़े के टट्टुओं को खड़ा कर माफिया अधिकारी से अनावश्यक बहस करवा देगा या अपशब्दों का भी प्रयोग करवा देगा ताकि अधिकारी प्रेशर में टूट जाए।

      ? इससे भी बात नहीं बनी तो अधिकारी की कमजोरियों को खोजना/पता करना शुरू करेगा। उसमें भी अधिकारी के कर्मियों की ही सहायता लेगा।

      यकीन मानिए कि माफिया अधिकारी को हनी-ट्रैप में भी फँसाने की पूरी कोशिश करेगा। अधिकारी फंस गया तो गया काम से। अगर नहीं फंसा तो भी अधिकारी के विरुद्ध झूठा आरोप किसी लड़की/महिला से तो लगवा ही देगा।

      ? बिहार के कुछ क्षेत्रों में अधिकारियों के ऊपर स्थानीय माफियाओं द्वारा झूठे SC/ST मामले में सिविल कोर्ट में परिवाद दायर करवाना आम बात है।

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      वहीं कुछ क्षेत्रों में अधिकारियों के ऊपर झूठे रेप मामलों में परिवाद दायर करवाना आम बात है। अब अधिकारी देते रहे सफाई….. सुननेवाला कौन है?

      ? नौकरी के 2-4 साल के अंदर ऐसी-ऐसी घटनाओं को झेलने के पश्चात अधिकांश अधिकारियों की हिम्मत जवाब दे देती है और वे भ्रष्टाचार रूपी शिष्टाचार की मुख्यधारा में ही शामिल हो जाना श्रेयस्कर समझते हैं।

      और क्यों न हों?

      भ्रष्ट माफियाओं के विरुद्ध लड़ते समय उनका साथ कोई देता नहीं। यहां तक कि वरीय पदाधिकारी भी साथ नहीं देते। सारी लड़ाई अकेले लड़नी पड़ती है। अमूमन नौकरी के 2-4 साल बाद शादी/बाल-बच्चेदार हो जाने के बाद अधिकारी का ध्यान बंट जाता है।

      उसका ध्यान सामूहिक हित को छोड़कर परिवार के व्यक्तिगत हित की तरफ केंद्रित हो जाता है। साथ ही वह व्यवस्था के प्रति इस कदर निराशा से भर जाता है कि अक्सर कहता है कि छोड़ो, बहुत कर के देख लिए, इ सिस्टम में  कुछ सुधार होवे वाला न है।

      सिस्टम क्या सुधरेगा, ओकरा सुधारे के चक्कर में हम हीं सुधर गए। मारो गोली, धारा के साथ बहने में ही भलाई है।

      ? यहाँ अधिकारी खुद को टूटा हुआ पाता है। जिसके अंदर कुछ करने की इच्छा होती भी है तो वह(इच्छा) मृतप्राय हो जाती है।

      ? बात ऐसी है कि ईमानदार बने रहने के लिए भी 3 चीजों की जरूरत पड़ती है।

      1. गहन जानकारी

      2. नैतिक बल

      3. गलत मामले में दोषी के विरुद्ध FIR करने के लिए कलम खोल कर रखना।

      ? अधिकारी को विषय पर गहरी पकड़ होनी चाहिए। उसके कलम में ताकत होनी चाहिए। उसको रूल/एक्ट की गहराई से जानकारी होनी चाहिए। इससे कई माफिया उससे ऐसे ही दूर हो जाएगा।

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      ? किसी के दबाव में अगर A का न होने वाला काम किसी अधिकारी ने कर दिया तो उसको नजीर मानकर B भी उसके ऊपर वैसा ही काम करवाने के लिए माथा पर चढ़ेगा ही चढ़ेगा।

      बेहतर यह है कि किसी दबाव में आए बिना सही काम करना चाहिए, क्योंकि 100% सत्य है कि कोई भी जो दबाव देकर अधिकारी से काम करवाना चाहता है, फंसने पर वह अधिकारी का कोई मदद करने नहीं जा रहा है।

      इसलिए भूल कर भी कोई अधिकारी अपना कलम कभी न फंसाएं।

      ? समाज में व्याप्त बुराइयों से खुद को दूर रखने के लिए नैतिक बल चाहिए। उसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़ आत्मविश्वास की जरूरत पड़ती है ताकि अधिकारी समाज में व्याप्त बुराइयों से खुद को दूर रखने के साथ-साथ उत्साह से भी लबरेज रहे।

      ? साथ ही कभी भी गलत के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। गलत लोगों के विरुद्ध FIR करने के लिए हमेशा कलम खोल कर रखना चाहिए। डरना नहीं चाहिए।

      लोग डराता है कि FIR करने पर ट्रांसफर होने के बाद फिर अधिकारी को गवाही देने दूसरी जगह से यहाँ आना पड़ेगा, वगैरह वगैरह।

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      इन सब बातों से विचलित नहीं होना चाहिए। सीधा सिद्धान्त बना कर चलना चाहिए कि गवाही आ के देना होगा तो देंगे, लेकिन गलत के विरुद्ध FIR तो करबे करेंगे।

      ? ऊपर के इन 3 बिंदुओं पर खरे उतरना कोई आसान काम नहीं है। सब के बूते की बात भी नहीं है। मुश्किल से 1 या 2% अधिकारी ही इन 3 बिंदुओं पर खरे उतरेंगे। जो खरे उतरेंगे, वे वन मैन आर्मी की तरह कहीं भी काम कर सकते हैं।

      ? माफिया सब समझता है कि इस अधिकारी को हिला पाना आसान काम नहीं है क्योंकि कई प्रकार से वो अधिकारी के मानसिक मजबूती का टेस्ट ले चुका होता है।

      ? इतना खेल तो टुटपुंजिया माफिया करता है चूंकि उसकी औकात अधिकारी का ट्रांसफर करवा देने की नहीं होती।

      अब देखिए….

      ? बड़ा माफिया और घातक होता है। वह या तो अधिकारी का ट्रांसफर करवा देगा या कहीं न कहीं से रोज अधिकारी को धमकी दिलवाएगा, ताकि अधिकारी खुद ही ट्रांसफर करवा के भाग जाए। कौन अधिकारी इतना प्रेशर झेलेगा और क्यों?

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      ? इसका एक्सट्रेम केस यह भी हो सकता है कि बड़ा माफिया अधिकारी के नाम की सुपारी भी दे दे। कई ईमानदार अधिकारियों का हश्र लोगों को मालूम ही होगा। कई पदाधिकारियों पर माफियाओं द्वारा गंभीर/जानलेवा हमला करवाया जाता रहा है।

      ? यहां पर सरकार का काम शुरू होता है। अगर सरकार अधिकारियों से ईमानदार बने रहने की अपेक्षा रखती है तो वैसे अधिकारियों को उचित सुरक्षा भी तो दी जानी चाहिए।

      अगर सरकार समुचित  सुरक्षा वैसे अधिकारियों को उपलब्ध नहीं करवाती तो उनसे ईमानदारी की अपेक्षा रखना बेमानी है।

      अपने खुफिया स्रोतों से यह पता करवाना सरकार के लिए कोई भारी काम नहीं है कि कौन अधिकारी कैसा काम कर रहा है औऱ उसको किस चीज की जरूरत है??

      ? ऊपर के सारे वर्णन से आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि अधिकारियों के लिए ईमानदार बने रहना आसान है या  दुष्कर?

      ? उपरोक्त सारी बातें एक आम जागरूक नागरिक की हैसियत से मेरे व्यक्तिगत विचार हैं। आपका क्या विचार है?

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