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    Tuesday, March 19, 2024
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      पुलिस-वकील की टकराव से आम जन में उत्पन्न भय-भ्रम शीध्र समाप्त जरुरी

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। नालंदा जिला मुख्यालय स्थित व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार पोरिका एवं पुलिस उपाधीक्षक निशित प्रिया द्वारा किये गये कथित दुर्व्यवहार से क्षुब्ध होकर कलमबंद हड़ताल पर हैं।

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      वहीं इस तीखे गतिरोध को दूर करने में जिलाधिकारी स्तर से भी समस्या समाधान नहीं ढूंढा जाना गंभीर चिंता का विषय है। क्योंकि मामला कथित सरकारी भूमि वनाम नीजि भूमि के विवाद से जुड़ा है और इसका हल भौतिक सत्यापन से संभव है।

      इस मामले में माननीय जिला न्यायालय भी संज्ञान लेने में सक्षम है। वह तत्काल विवाद हल करने की दिशा में पहल करने या सक्षम प्राधिकार को निर्देश देने में सक्षम है।nalanda cout stike angest police sp dsp crime 1

      भले ही यह मामला न्यायपालिका और कार्यपालिका में सीधी टकराव न हो लेकिन इसे उससे इतर भी नहीं देखा जा सकता। आम जनता में भ्रम और परेशानी का महौल है।

      जिला अधिवक्ता संघ के निर्वाचित पदाधिकारियों-सदस्यों का अपना अलग सम्मान है और जिला पुलिस कप्तान या अन्य पदाधिकारियों की अपनी अलग पहचान। पुलिस को अगर आईपीसी की धाराओं के तहत अगर कुछ आपात शक्तियां मिली हुई है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वे उसकी आड़ में समाज में भय-भ्रम का महौल पैदा करे।

      लहेरी थाना पुलिस ने यहां भ्रम का महौल पैदा किया है। नगर आयुक्त की आम शिकायत पर वह विवादित भूमि पर गई और अधिवक्ता को पकड़कर थाने ले आई, लेकिन उसकी पीडबैक नगर आयुक्त को नहीं दी। शायद एसपी भी उसी में गुमराह हो गये। डीएसपी थोड़ी बड़बोली नजर आईं। एसपी और संघ की बातचीत के दौरान उन्हें सम्मानित वकीलों को उकसाने वाली भाषा पर संयम बरतनी चाहिये थी। खैर जो हो गया सो हो गया। आगे की सुध लेने की जरुरत है।

      जैसा कि यहां आम तौर देखा जा रहा है। एक पुलिस कांस्टेबल हो या आईपीएस, वे हैं आम जनता की गाढ़ी कमाई के सरकारी खजाने से पगार पर काम करने वाले लोक सेवक मात्र हीं।

      यह बात किसी से छुपी नहीं है कि पुलिस-वकील विवाद एक विवादित भूमि से जुड़ा है। एक वकील का कहना है कि वह जमीन उसकी है। उसके कागजात उसके पास है। उसके पास हाई कोर्ट के ऑडर भी है।लेकिन उस आर्डर में लिखा क्या है, उसका विश्लेषण कोई नहीं nalanda cout stike angest police sp dsp 0

      दूसरी तरफ नगर निगम का कहना है कि वह भूमि उसकी है। जिस पर वह पानी टंकी का निर्माण करवा रहा है। अगर वह भूमि नगर निगम की है और उसके पास ठोस प्रमाण हैं तो फिर किसी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दबंग ठेकेदार-मजदूर से जबरिया काम कराने की सूचना भी समझ से परे है।

      ऐसों मामलों की तत्काल उच्चस्तरीय जांच-कार्रवाई होनी चाहिये। वाटर वोरिंग-टंकी के निर्माण भी जनहित के विषय है। इसकी गंभीर विषय पर वकीलों को भी विचार करनी चाहिये। अगर वरीय पदाधिकारी के साथ कोई ईगो मैटर सामने आता है तो संभव है कि उसमें कुछ भ्रम भी शामिल हो।

      अगर कोई पुलिस थानाध्यक्ष मनमानी करता है या उसके उपर के अधिकारी सामान्य व्यवहार नहीं करते तो उनके विरुद्ध भी न्यायालय के दरवाजे खुले हैं। धरना-प्रदर्शन, जोश जुलूश, मीडिया में सिर्फ वयानबाजी समस्या का समाधान नहीं है। इससे आम जनता में भय और भ्रम का महौल सिर्फ कायम होता है। अराजकता की स्थिति बनती है। जिस पर नियंत्रण की जबावदेही भी उन्ही पर है। 

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