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    Friday, March 29, 2024
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      स्थानीय पत्रकारिता और आंचलिक पत्रकारिता

      news-मुकेश भारतीय-

      रांची के डीडीसी विरेन्द्र कुमार सिंह के सामने ओरमांझी बीडीओ रजनीश कुमार ने मीडिया को लेकर जिस तरह की मानसिकता प्रकट की, वह सरकार प्रयोजित महात्वाकांक्षी ग्रामीण विकास योजनाएं और मीडिया की भूमिका पर अनेक सबाल खड़े करते हैं। इस पर राजनीति, अर्थ और अधिकार स्तर पर बहस होनी चाहिए तथा सरकार को ठोस कदम उठानी चाहिए। क्योंकि यदि हम पंचायती राज के परिप्रेक्ष्य में गांधीजी के सपनों का भारत की कल्पना बांचते हैं तो यह अपरिहार्य है। सत्ताशीर्ष पर बैठे प्रथम जिम्मेवार सक्षम व्यक्ति, जिनसे लोगों की असीम आशाएं बंधी होती है, उन्हें भी इस दिशा में ठोस कदम उठानी चाहिए। ताकि हर तरफ एक पारदर्शी व्यवस्था दिखे।

      इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज की पत्रकारिता किसी न किसी रुप में गांव के हर घर तक पहुंच गई है। फिर भी उसकी हालत है कि उसे विश्वसनीय स्रोत नहीं समझा जा सकता। हालांकि उनकी सूचनाओं में आयना भी होती है। बदले परिवेश में आम तौर पर सूचना संकलन, लेखन व संप्रेषण करने वाले ग्रामीणों की नजर में प्रेस रिपोर्टर माने जाते हैं। कोई यह नहीं समझता कि वे किस अखबार या चैनल से किस रुप में जुड़े हैं और उन्हें क्या नसीब हो रहा है। महज मानसिक शांति या सत्ता की दलाली की सुविधा या फिर गांव-समाज जहां वह पैदा हुआ, पला-बढ़ा, उसकी आवाज बनने का जुनून। आम आरोप लगता है कि रिपोर्टर लोग व्यवस्था की दलाली करते हैं। बहुत लोग करते भी हैं लेकिन गेहूं के साथ घुन का भी पिसना लाजमि है। कमोवेश यह स्थिति हर प्रखंड क्षेत्रों में है।

       अमुमन होता यह है कि प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीति से जुड़े लोग स्वहित की सूचनाएं मीडिया के सामने ढोल पीट-पीट कर सुनाते तो जरुर हैं लेकिन जब जनहित से जुड़े मुद्दों की बात होती है तो उससे दूर रखने की वे हर तिकड़म अपनाते हैं। अगर लाख अवरोधों के बाद भी कोई सूचना प्रकाशित-प्रसारित हो जाता है तो इससे जुड़े लोगों पर मनगढ़ंत आरोप लगने शुरु हो जाते हैं। जब बीडीओ के सामने डीडीसी को बताया गया कि स्थानीय शासन-प्रशासन से जुड़े अधिकारी अपनी उपलब्धि बताने के लिए रिपोर्टरों के चरणधोऊ बन जाते हैं, वहीं जब योजनाओं को लेकर कोई समीक्षात्मक बैठक होती है या आला अफसरों की पड़ताल है या फिर क्षेत्र भ्रमण-निरीक्षण होता है तो उसे काफी गोपनीय रखा जाता है जोकि, विकास और पारदर्शिता के जनहित में नहीं है। सूचनाएं हर स्तर की आनी चाहिए। जिससे सरकार की नीति की सही तस्वीर दिख सके।

      बीडीओ यहां चार साल से पदास्थापित हैं। इस दौरान उनकी व्यवस्था और कार्यशैली का क्षेत्र के विकास पर अपेक्षानुरुप प्रभाव कहीं नहीं दिखता। अगर माननीय मुख्यमंत्री की महात्वाकांक्षी डोभा योजना की ही बात करें तो बकौल डीडीसी, रांची जिले के अन्य प्रखंडों की तुलना में ओरमांझी प्रखंड में हालत काफी बद्दतर है। इसका मूल कारण है कि योजना से जुड़े कर्मी उसके उद्देश्य के बारे में अच्छी तरह से जानते ही नहीं हैं और न ही लाभुक को उसके सर्वांगिन विकास में योजना की उपयोगिता को समझा पाते हैं।

      बहरहाल, यह संचार क्रांति का युग है। मीडिया गांव के खेत खलिहान तक पहुंच गई है। प्रखंडो तक में प्रायः सभी अखबारों के रिपोर्टर हैं। उनकी सूचनाएं हर दृष्टिकोण से मायने रखती है। अगर सत्ता शीर्ष स्तर से गांव-देहात की उसझनों को मीडिया से जोड़ दिया जाए तो सरकार की छवि भी निखरेगी और जनता की गाढ़ी कमाई के खाने के उपरांत भी कुर्सीतोड़ू अफसर सीधे खड़े भी नजर आएगें।

       माननीय सीएम रघुवर दास झारखंड में एक सजग और सुलझे हुए नेतृत्व के रुप में तेजी से उभर रहे हैं। वे इस दिशा में भी ठोस कदम उठा कर एक और मिसाल कायम कर कते हैं। प्रखंड, अंचल औऱ थाना स्तर पर एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण हो कि कोई भी जन उपयोगी सूचनाओं को मीडिया तक आने में रोक न पाएं। क्योंकि सरकार की मंशा कभी गलत नहीं होती। गड़बड़ तभी होती है, जब उसका सच सरकार तक नहीं पहुंच पाता है। न्यूनतम सप्ताह में एक दिन 2-3 घंटें भी जिम्मेवार प्रशासन की मीडिया को सही जानकारी की बाध्यता हो। अगर क्षेत्र में कोई आला अधिकारी या नेतृत्व कोई समीक्षा या निरीक्षण करने पहुंचे तो उसे गोपनीय न रखा जाए। इससे जनोपयोगी विकास योजनाओं में छोटे-बड़े सभी मीडियाकर्मियों की सहभागिता होगी। कभी किसी को यह नहीं लगेगा कि कोई कुछ छुपा रहा है या सच का झूठ प्रचार कर रहा है या फिर झूठ को सच समझा रहा है।

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