अन्य
    Tuesday, April 23, 2024
    अन्य

      राजगीर अनुमंडलीय अस्पतालः आज डॉ. उमेश चन्द्रा सा बाड़ ही यूं खाते दिखे खेत

      सरकारी अस्पतालों की हालत दयनीय है या उसके रहनुमाओं ने ही उसका बेड़ा गर्क कर अवैध कमाई का जरिया बना डाला है। यह एक अलग बड़ा सबाल है, लेकिन दशकों से  राजगीर  अनुमंडलीय अस्पताल में जमे प्रभारी चिकित्सक उमेश चन्द्रा ने अपनी काली कमाई के आगे मानवता को भी शर्मसार करने वाली रवैया अपनाया है….”

      RAJGIR DR UMESH CHANDRA CRIME 1
      राजगीर अनुमंडल अस्पताल के प्रभारी चिकित्सक उमेश चन्द्रा का प्रायवेट क्लीनिक..

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। नालंदा जिले के राजगीर नगर पंचायत क्षेत्र में गरीबी और उपेक्षा के शिकार एक महादलित परिवार के मुखिया उमेश कंजर ने भूख और गरीबी से तंग हालत में अपने तीन बच्चों के साथ जहर खाकर अपनी जीवन लीला खत्म करने की कोशिश की।

      राजगीर थाना के सामने बीएसएनएल ऑफिस के पास करीब दो दशक से झुग्गी-झोपड़ी बनाकर रह रहे पीड़ित उमेश कजंर को उसके 3 बच्चों (सभी लड़का) को परिजनों-पड़ोसियों ने ईलाज के लिए राजगीर सदर अस्पताल ले गए। वहां ईलाज के दौरान एक बच्चा की मौत हो गई।

      इसके बाद राजगीर अनुमंडलीय अस्पताल के चिकित्सक उमेश चन्द्रा ने अस्पताल में ईलाज करने से इन्कार कर दिया और उसे रेफर करने के बजाय अपने नीजि क्लीनिक में ले चलने को कहा। वहां सबों का ईलाज किया जा रहा है।

      इसकी जानकारी राजगीर अनुमंडल पदाधिकारी को भी है। प्रखंड विकास पदाधिकारी विकास पदाधिकारी भी डॉ. उमेश चन्द्रा के नीजि क्लीनिक में पीड़ित को देखने गए।

      RAJGIR DR UMESH CHANDRA CRIME 2
      डॉ. उमेश चन्द्रा के नीजि क्लीनिक में पीड़ितों का हालचाल ले रहे राजगीर प्रखंड विकास पदाधिकारी……

      इस संबंध में जब प्रखंड विकास पदाधिकारी से पूछा गया तो उनका कहना था कि पीड़ित कमाता-धमाता नहीं था। भूख से मरने की बात गलत है।

      जब उनसे पूछा गया कि क्या उस जैसे एक महादलित गरीब को मिलने वाली आपातकालीन सरकारी सुविधाएं और सहायताओं का लाभ मिलता था तो उन्होंने कहा कि पीड़त परिवार नगर पंचायत क्षेत्र का निवासी है, वे नहीं बता सकते। नगर पंचायत के लोग ही बता सकते हैं।

      RAJGIR DR UMESH CHANDRA CRIME 0

      उधर नगर पंचायत के एक जिम्मेवार अधिकारी का कहना है कि कोई भूख से मर गया तो उसमें वे क्या कर सकते हैं। लोग मरते रहते हैं। कितनों को देखते रहेगा नगर पंचायत। यहां कोई ऐसा दलित या महादलित नहीं है, जो सुविधा बंचित हो।

       सबाल उठता है कि जहर खाने-खिलाने का मूल कारण कुछ भी रहा हो। अनुमंडल स्तर की एक सरकारी अस्पताल में पदास्थापित प्रभारी चिकित्सक मरीजों का ईलाज न कर उसे अपने प्रायवेट क्लीनिक में ले जाकर कैसे और किस लालच में कर सकता है?

      इस सवाल पर खुद डॉ. उमेश चन्द्रा ने स्पष्ट रुप से कहा कि सब तो नीजी क्लीनिक चलाता ही है। इसमें गलत क्या है। जब उनसे पूछा गया कि प्वाइजन केस में सरकारी  अस्पताल से अपने खुद के क्लिनीक में लाकर ईलाज करने का अधिकार है? इस पर डॉ. चन्द्रा का कहना है कि लोग लेकर आए हैं। ईलाज हो रहा है।

      जाहिर है कि तमाम उसूलों-आदर्शों और सरकारी तौर-तरीकों को ताक पर रख कर ऐसी कार्यशैली सिर्फ गरीबों के खून चूसना ही माना जाएगा। डॉ. उमेश चन्द्रा की ऐसी शिकायते आम है। उनके पुनः पदास्थापन में भी फर्जीवाड़ा की बू है। जिला-अनुमंडल प्रशासन द्वारा ऐसे राजनीतिक पैरवी पुत्रों के खिलाफ ‘अंखमूनमा’ बनना भी अनेक सवाल खड़े करते हैं।

      संबंधित खबरें
      error: Content is protected !!