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    Thursday, April 18, 2024
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      पुलिसिया कुकृत्यः पत्नी जिंदा थी, लेकिन उसकी हत्या में 6 माह से जेल में था पति, कोर्ट ने कहा-

      पुलिस ने वैज्ञानिक जांच का दावा कर 48 घंटे के अंदर अज्ञात शव को राघोपुर थाना क्षेत्र के बेरदह निवासी सोनिया का शव मानते हुए उसके पति रंजीत पासवान, ससुर विष्णुदेव पासवान और उसकी सास को गिरफ्तार कर 28 मई को जेल भेज दिया…..”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। अपनी पत्नी की हत्या में एक शख्स छह महीने से जेल में बंद था, अब वह महिला जिंदा मिल गई है। इस खबर के सामने आते ही हड़कंप मच गया है। वहीं पुलिस पर लोग सवाल भी उठा रहे हैं।

      जब महिला की जिंदा होने की सूचना कोर्ट को मिली तो कोर्ट ने हत्या मामले में जेल में बंद पति और ससुराल के अन्य लोगों को बरी कर दिया। इसके साथ ही स्थानीय पुलिस पर तीखी टिप्पणी भी की।

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      कोर्ट ने पुलिस की कार्यशैली को हास्यासपद और कानून की नजर में मजाक बताया। कोर्ट ने पुलिस की इस कृत्य को काला धब्बा करार दिया।

      मामला सदर थाना कांड सं. 310/18 और सत्रवाद संख्या 212/18 से जुड़ा हुआ है। कोर्ट ने मामले में पीड़ित पक्ष को प्रतिकर योजना के तहत 6 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश भी पुलिस को दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पुलिस चाहे तो यह राशि जांचकर्ता के वेतन से काट सकती है।

      मामले में एडीजे थ्री रविरंजन मिश्र की कोर्ट ने 23 दिसंबर को सुनाए अपने ऐतिहासिक फैसले में माना है कि पुलिस जिस किसी भी केस की जांच करती है, उसकी सिर्फ टेबल रिपोर्टिंग बनाती है। कोर्ट ने इस मामले में साढ़े पांच महीने तक आरोपितों को न्यायिक हिरासत में रखे जाने को भी अवैध माना है।

      आदेश में कहा गया है कि जांचकर्ता की लापरवाही के कारण जो व्यक्ति जिंदा है, उसकी मौत के संबंध में दाखिल आरोपपत्र त्रुटिपूर्ण, लापरवाहीपूर्वक और जांचकर्ता की अयोग्यता, अक्षमता, कर्त्तव्य के प्रति लापरवाही और उदासीनता का सूचक है।

      जांचकर्ता की वजह से एक ऐसा मामला, जिसकी जांच नहीं हो सकी, वह स्वत: समाप्त हो गया। यही नहीं बरामद शव जिस महिला का बताया गया, वह अगर जिंदा थी तो फिर वह शव किस महिला का था। इसकी जांच आज तक नहीं हो पाई। यह मामला बिना प्राथमिकी, बिना जांच के समाप्त हो गया, जो बिहार पुलिस के लिए काला धब्बा और शर्मनाक विषय है।

      सुपौल सदर थाना क्षेत्र के तेलवा में 26 मई 2018 को एक अज्ञात महिला का शव मिला था। चौकीदार सियाराम पासवान के बयान पर अज्ञात के खिलाफ केस दर्ज हुआ।

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      शव को सोनिया के माता पिता को भेजकर उसका अंतिम संस्कार करा दिया गया। मामले में शेष पांच आरोपितों के फरार रहने के कारण कुर्की-जब्ती का आदेश भी दिया गया।

      इस बीच 21 नवंबर 2018 को एक महिला सदर थाना पहुंचती है और स्वयं को सोनिया होने का दावा करती है। उधर, 5 महीने और 20 दिन जेल में रहने के बाद हाईकोर्ट और जिला जज ने पत्नी की हत्या में बंद पति को जमानत दे दी।

      कोर्ट ने मामले में आरोपित किए गए रंजीत पासवान, विष्णुदेव पासवान और गीता देवी को दोषमुक्त करते हुए उन्हें और उनके जमानतदारों को बंधपत्र के दायित्वों से भी मुक्त कर दिया है।

      उधर, इस मामले में पीड़ित पक्ष की ओर से न्यायिक लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार सिंह ने कहा है कि वे इस मामले को हाईकोर्ट तक ले जाएंगे। मामले में कोर्ट की टिप्पणी पुलिस की कार्यशैली की पोल खोल रही है।

      ऐसे एक नहीं कई मामले जिले में हैं। उन्होंने संबंधित आईओ और केस से जुड़े तत्कालीन पुलिस पदाधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने की मांग भी की है। वह इसके लिए हाईकोर्ट तक जाएंगे।

      उधर, कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित पक्ष ने कानून के प्रति आस्था जताई है। उनका कहना है कि देर से ही सही उन्हें न्याय मिला। दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

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