“नगरनौसा जेडीयू दलित प्रकोष्ठ के प्रखंड अध्यक्ष गणेश रविदास की फांसी के मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट संदेह के घेरे में है…”
बिहारशरीफ (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। पोस्टमार्टम बिहार शरीफ के सदर अस्पताल में कराया गया जिसमें अस्पताल उपाधीक्षक के नेतृत्व में 4 डॉक्टरों की टीम, डीएसपी इमरान परवेज के नेतृत्व में कई पुलिस पुलिस पदाधिकारी और दो वीडियोग्राफर पोस्टमार्टम रूम में मौजूद थे।
पोस्टमार्टम के पहले उनके परिजनों को शव को देखने के लिए बुलाया गया, मगर जैसे ही परिजन उनके शरीर पर जख्म के निशान को देख चित्कार करने लगे, पुलिस के ऊपर टॉर्चर कर हत्या का आरोप लगाने लगे।
पुलिस ने तुरंत उनके परिजनों को पोस्टमार्टम रूम से बाहर कर दिया। यही नहीं दोनों वीडियो ग्राफर को भी अपने अपने कैमरे को अंदर छोड़कर बाहर जाने का निर्देश दिया गया।
हालांकि प्रशासन का दावा है कि एक वीडियोग्राफर पोस्टमार्टम रूम में मौजूद था। इधर अस्पताल उपाधीक्षक ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट तुरंत दे दिए जाने की बात कही, जबकि पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में कुछ भी कहने से परहेज कर रही है।
पोस्टमार्टम रूम में केवल पुलिस और सरकारी नुमाइंदे ही मौजूद थे। इससे परिवार वाले पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर संदेह जाहिर कर रहे हैं।
हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या आता है। यह तो अभी नहीं पता चल सका है। मगर लड़की द्वारा कोर्ट में बयान दिए जाने के बाद इतना तो खुलासा हो गया। एक निर्दोष व्यक्ति को हाजत में बंद कर मानसिक और शारीरिक यातनाएं दी गई।
यानि क्या कहा जा सकता है। झूठे मुकदमे में पुलिस ने गणेश को इतना टॉर्चर किया कि वह दुनिया से ही अलविदा हो गया।
फिलहाल इस घटना के बाद नालंदा पुलिस जल्द से जल्द अपनी डायरी तैयार कर रहा है, ताकि पुलिस के वर्दी के ऊपर लगे बदनुमा दाग को घोया जा सके।
हालांकि केस डायरी को कोर्ट भेजने के मामले में नालंदा पुलिस काफी शिथिल रही है। कुछ मामले ऐसे है, जो पांच या दस वर्षों में भी निष्पादित नही किया जा सका है।
खैर यह तो आम लोगो की डायरी की बात है। यह तो खुद पुलिस का अपना मामला है। इसमें कोताही नहीं बरतेगी नालंदा पुलिस।