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    Thursday, March 28, 2024
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      इस बदतर झारखंड से बेहतर तो अविभाजित बिहार ही था: बागुन सुम्ब्रुई

      bagun 1करीब चार दशक तक और चार पीढ़ियों के झारखण्ड आंदोलन से जुड़े पाँच बार के सांसद , चार बार के विधायक , मंत्री , विधानसभा उपाध्यक्ष  रहे बागुन सुम्ब्रुई राज्य की स्थिति से नाराज है । उन्होंने खुले तौर पर कहा कि इस बदतर स्थिति से बेहतर तो अविभाजित बिहार ही था । इसलिए अगर राज्य के वर्तमान विधायक इस व्यवस्था और वर्तमान शासन से संतुष्ट नहीं है तो विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर दोबारा बिहार में शामिल होने का प्रस्ताव पारित करना चाहिए । इस राज्य में छत्तीसगढ़ी का राज जिस तरीके से चल रहा है , उससे यहाँ के आदिवासियों और मूलनिवासियों का कोई भला नहीं हो रहा है । जिस मकसद को हासिल करने के लिए झारखण्ड की लड़ाई लड़ी गयी , वह आज भी प्राप्त नहीं है ।

      बुधवार को अपने आवास में प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए बागुन सुम्ब्रुई ने उक्त बाते कही। इस दौरान कांग्रेस जिला सचिव त्रिशानु राय भी शामिल रहे ।

      उन्होंने कहा कि यहाँ के आदिवासी और मूलवासी अब भी जल , जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ने में जूझ रहे है । झारखण्ड अलग राज्य कि लड़ाई में वह कई पीढ़ी के लोगों के साथ रहे । प्रारंभ में वह जयपाल सिंह मुण्डा , कार्तिक उराँव , एन ई होरो और जस्टिन रिचर्ड के साथ थे । बाद में लालू उराँव , रामदयाल मुण्डा और अंतिम चरण में आजसू के लोग भी इस आन्दोलन में उनके साथ रहे ।

      उन्होंने कहा कि अलग राज्य बनने तक यही सपना था कि राज्य बन जाने से जल , जंगल और जमीन की रक्षा होगी । यहाँ के लोगो को नौकरी मिलेगी , शिक्षा -स्वास्थ और सामान्य जन सुविधाएं मिलेंगी , जिनके बारे में यह सोचा जाता था कि बिहार में होने की वजह से उन्हें यह सुविधाएं नहीं मिलती है । अब 17 साल के दौरान नतीजा सबके सामने है ।

      श्री सुम्ब्रुई ने कहा कि एक छत्तीसगढ़ी के राज में रहना उनको स्वीकार्य नहीं । राज्य का वर्तमान मुख्यमंत्री लोकतांत्रिक तरीके से काम नहीं करता वह झारखण्ड पर राज करना चाहता है ।

      उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के आचरण की भी निंदा करते हुए कहा कि दल बदलने वाले विधायकों पर फैसला नहीं सुनाने की वजह से पूरी दुनिया में आदिवासियों का मजाक बन गया है । यह मामला चार हफ्तों में निर्णय हो जाना चाहिए था जबकि विधानसभा अध्यक्ष ने इसे तीन साल से लटका रखा है । इससे यह छवि भी बन रही कि आदिवासी ही यहाँ के आदिवासियों का सबसे बड़ा विरोधी है ।

      उन्होंने इस क्रम में आजसू से भी अपनी स्थिति स्पष्ट करने की बात कही है । उन्होंने कहा कि सरकार में होने के बाद यह पार्टी अपनी पहचान के संकट में जूझ रही है । सरकार के पैसलों का विरोध के बाद भी जब उनकी बात सुनी नहीं जा रही तो आजसू को भी जनता के हितों का ख्याल करना चाहिए ।

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