“इसी जिले में पंद्रह दिनों पूर्व पांच निर्दोष पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी गई थी। उस वक्त से लेकर आज तक कभी किसी संगठन को सड़क से लेकर संसद तक हंगामा करते नहीं देखा गया। जिस तरह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया कैदी की मौत पर हल्ला हंगामा मचा रही है और सीधे दिल्ली से ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर पूरे मामले पर एकतरफा रिपोर्ट दिखा रही है…..”
-: एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क/ मुकेश भारतीय :-
सरायकेला-खरसावां से पत्रकार वीरेन्द्र मंडल के साथ ग्राउंड रिपोर्ट। पिछले दिनों 17 जून की रात्रि के एक बजे जिस तरह से सरायकेला के धातकीडीह गांव में घुसे चोर तवरेज अंसारी उर्फ सोनू की पिटाई ग्रामीणों ने की थी और अगले दिन यानि 18 तारीख को पुलिस ने उसका मेडिकल करा फिटनेस प्रमाण पत्र मिलने के बाद न्यायिक हिरासत में मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत कर वहां से अनुमति लेने के बाद जेल भेज दिया था।
जहां चार दिनों के बाद यानि 22 तारीख को तवरेज की मौत सरायकेला सदर अस्पताल में हो गई थी, लेकिन परिजनों ने तवरेज को जिंदा बताते हुए जमशेदपुर रेफर करने की मांग पर अड़े रहे।
जिसके बाद एसडीपीओ अविनाश कुमार ने अस्पताल के डॉक्टरों को परिजनों के अनुरोध पर तवरेज के शव को जमशेदपुर रेफर करने की शिफारिश की। परिजनों के दबाव और एसडीपीओ की शिफारिश को देखते हुए सदर अस्पताल प्रशासन ने मृत कैदी तवरेज को जमशेदपुर रेफर कर दिया।
हालांकि जमशेदपुर के टाटा मुख्य अस्पताल ने कैदी तवरेज को मृत घोषित करने के बाद वापस सरायकेला भेज दिया। इधर परिजनों ने सरायकेला पोस्टमार्टम हाउस में भी जमकर हंगामा किया। जिसके बाद मेडिकल बोर्ड का गठन कर कैदी के शव की पोस्टमार्टम हुई।
आगे जांच रिपोर्ट आने के बाद ही खुलासा हो सकेगा कि उस रिपोर्ट में मृतक के शरीर पर किस तरह के निशान पाए गए हैं और क्या वाकई कैदी की मौत ग्रामीणों की पिटाई से हुई है ? या मामला कुछ और है। फिलहाल पोस्टमार्टम रिपोर्ट की बाबत सूचना आ रही है कि तबरेज की मौत का कारण अंदरुनी चोट नहीं है, जिसके कारण उसकी मौत हो जाए।
वैसे जिस तरह से खरसावां में पल- पल घटनाक्रम बदल रहा है। उससे तो कयास यही लगाया जा सकता है कि कोई तत्व जिला को अशांत करने में जुटा है। एक कैदी की मौत पर जिस तरह से सरायकेला से लेकर संसद तक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना हुआ है।
उससे तो यही कहा जा सकता है कि वैसे लोग जो कैदी तवरेज के मामले में सहानुभूति दिखा रहे हैं और सड़क से लेकर सदन तक उसके लिए इंसाफ मांग रहे हैं। उससे देश का एक बड़ा वर्ग इस सवाल का भी जवाब मांग रहा है कि इसी जिले में पंद्रह दिनों पूर्व पांच निर्दोष पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी गई थी।
उस वक्त से लेकर आज तक कभी किसी संगठन को सड़क से लेकर संसद तक हंगामा करते नहीं देखा गया। जिस तरह से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया कैदी की मौत पर हल्ला हंगामा मचा रही है और सीधे दिल्ली से ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर पूरे मामले पर एकतरफा रिपोर्ट दिखा रही है, उससे मीडिया दो फाड़ में नजर आ रही है।
वैसे मीडिया संस्थानों के प्रतिनिधियों की भूमिका की जांच जरूरी है, जो सीधे दिल्ली से फ्लाईट से रांची और वहां से रिजर्व लक्जरी गाड़ी से ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर रिपोर्ट कर वापस दिल्ली जाकर एकतरफा रिपोर्ट दिखा रहे हैं।
वैसे इनके पीछे फंडिंग करनेवाले संस्थानों की भी जांच जरूरी है। अगर पुलिसकर्मियों की हत्या पर ग्राउंड रिपोर्ट कर मामले का खुलासा करते तो शायद लोगों की सहानुभूति भी मिलती। इससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का चाल चरित्र और चेहरा का चित्रण हो रहा है।
जबकि पूरे घटनाक्रम को लेकर स्वतंत्र रूप से जिला प्रशासन और सरकारी रुख की जांच करने पहुंची टीम ऑल इंडिया जमायतए- उलेमा बेहद ही संतुष्ट नजर आई। टीम के सदस्य बरकत काज़मी ने जिला प्रशासन की कार्रवाई का स्वागत किया और कहा कि मामले में जिला प्रशासन और सरकार गम्भीरता दिखा रही है। भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसको लेकर सरकार से बात की जाएगी।
वहीं पूरे घटनाक्रम की जांच करने पहुंची राज्य अल्पसंख्यक आयोग की टीम अध्यक्ष मोहम्मद कमाल खान के नेतृत्व में पहले कैदी तवरेज के घर क़दमडिहा पहुंची और वहां परिजनों के बयान को कलमबद्ध किया।
परिजनों ने आयोग के समक्ष पिटाई के बाद मृतक द्वारा पानी मांगे जाने पर पानी के बदले धतूरे का रस पिलाए जाने की बात बताई गई, जबकि आज तक यह बात सामने नहीं आया था और न ही मृतक की पत्नी ने एफआईआर में इसका जिक्र किया है।
उसके बाद आयोग की धातकीडीह गांव पहुंची जहां टीम ने घटनास्थल का जायजा लिया उसके बाद वहां मौजूद ग्राम प्रधान, पूर्व मुखिया समेत कई महिलाओं से घटना की विस्तार से जानकारी सुनने के बाद सभी का बयान कलमबद्ध किया।
आयोग के समक्ष जहां मृतक के परिजनों ने पुलिस प्रशासन और अस्पताल की कार्यशैली पर सवाल उठाया, वहीं घटनास्थल पर भी ग्राम प्रधान ने आयोग के समक्ष गांव में चोर पकड़े जाने की पहली जानकारी जिले के एसपी और मुखिया को दिए जाने की बात कही।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर रात में ही जब ग्रामीणों द्वारा जिले के एसपी को सूचना दी गई थी तो फिर पुलिस प्रशासन ने मामले पर गंभीरता क्यों नहीं दिखाई। जबकि जिला में पूर्व में इस तरह की घटना घटित हो चुकी है।
वैसे ये भी बताया गया कि थाना विवाद को लेकर रात भर घटनास्थल पर पुलिस नहीं पहुंची थी। मामले में पुलिस द्वारा सक्रियता दिखाई गई होती तो शायद तवरेज भीड़ के आक्रोश से बच गया होता।
आयोग के समक्ष धातकीडीह की महिलाओं ने खुदको असुरक्षित बताते हुए कहा कि पुलिसिया कार्रवाई के डर से गांव के युवा और पुरुष भागे हुए हैं, जिसका फायदा उठा कर कुछ मुस्लिम संगठन के युवक गांव आकर महिलाओं के साथ अश्लील भाषाओं का प्रयोग करते हैं।
वहीं मौजूद पूर्व मुखिया ने घटना के संबंध में बताया कि जिस वक्त पुलिस तवरेज को गांव से लेकर गई थी, उस वक्त वह चलकर गया था, जितनी पिटाई की बात बताई जा रही है, उसे सिरे से खारिज किया।
पूर्व मुखिया ने बताया कि गांव में लगातार चोरी की घटनाएं हो रही थी, 17 तारीख को भी तीन युवक रात के लगभग एक बजे के आसपास गांव में घुसे थे, इस दौरान जिस घर में चोरी हो रही थी, उस घर के सदस्य की नींद खुल गई।
इस दौरान दो चोर भागने में सफल रहा, जबकि तवरेज झाड़ियों में छुप गया था जिसे ग्रामीणों ने दबोच लिया और उसे बिजली के पोल से बांधकर पूछताछ किया। हालांकि पूर्व मुखिया ने तवरेज की पिटाई किए जाने की बात स्वीकारी।
मगर जिस तरह के पिटाई का वीडियो वायरल किया जा रहा है, उस पर उन्होंने आपत्ति जताया और वीडियो क्लिप की सत्यता पर सवाल उठाया।
वहीं गांव की महिलाओं ने पिटाई के दौरान जय श्री राम और जय हनुमान का नारा लगाने के लिए बाध्य करने पर बताया कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। चोर द्वारा उसके साथियों का नाम पूछा गया और जब उसने नहीं बताया। तब उसका नाम और पता पूछा गया।
जिस पर तवरेज ने अपना नाम सोनू बताया, जिसके बाद गांव के युवाओं को शक हुआ तब उसके साथ सख्ती बरती गई थी। हालांकि पुलिस अगर रात को ही गांव पहुंच जाती तो युवक के खिलाफ ग्रामीण आक्रोशित नहीं होते।
वैसे जिले के एसपी ने भी शुरू से ही वायरल वीडियो क्लिप की सत्यता को सिरे से खारिज किया था और उसे जांच के लिए भेज दिया है। दोनों पक्षों की सुनने के बाद आयोग ने मौजूद एसडीओ और एसडीपीओ को दोनों ही गांव में सुरक्षा बलों की तैनाती करने का निर्देश दिया।
साथ ही दोनों गांवों के शांति समितियों के साथ बैठक कर शांति बहाली के लिए पहल करने का निर्देश दिया। इधर आयोग के अध्यक्ष मोहम्मद कमाल खान ने भी जिला प्रशासन की कार्रवाई पर संतुष्टि जताया और कहा, कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार किसी को नहीं है।
वे अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेंगे साथ ही मृतक की बेवा को उचित मुआवजा और जीवन बसर के लिए जहां तक संभव होगा सरकार को अपने स्तर से सिफारिश करेंगे।
आखिर इतनी रात को तवरेज और उसका दो अन्य साथी, धातकीडीह गांव में क्या कर रहा थाः जिस तरह से इस बात को हवा दी जा रही है कि ग्रामीणों ने 17 जून को रातभर तवरेज उर्फ सोनू को बिजली के खंभे में बांधकर पिटाई की और अगले दिन घटनास्थल पर करीब आठ बजे के आसपास पुलिस के पहुंचने से पहले तक उसकी पिटाई दो तीन गांव के ग्रामीण करते रहे।
मृतक की पत्नी ने भी थाने में जो शिकायत दर्ज कराया है, उसमें ऐसा ही जिक्र है। वैसे उस शिकायत में इस बात का भी जिक्र किया जा रहा है कि भीड़ द्वारा तवरेज से जबरन धर्म विरोधी नारे भी लगवाए गए और पूरे घटनाक्रम का वायरल वीडियो क्लिप भी पुलिस को सौंपा है।
यहां सवाल उठता है कि बतौर मृतक की पत्नी उसका अंतिम बार रात दस बजे उसके पति यानि तवरेज अंसारी उर्फ सोनू के साथ बात हुई थी, जिसमे उसने बताया था कि वह घर लौट रहा है।
यानि दर्ज एफआईआर के मुताबिक वह जमशेदपुर के आजादनगर स्थित अपनी फूफी के घर गया था, वहां से इतनी रात को मुख्य रास्ते से न जाकर तवरेज अपने दो अन्य दोस्तों नुमेर अली और मोहम्मद नजीर के साथ सिनी के रास्ते से क्यों लौट रहा था?
दूसरा सवाल जिस वक्त तवरेज की पिटाई हो रही थी, उसके बाद से ही दोनों युवक फरार हैं। जो आज तक न तो अपने गांव पहुंचा है और न ही पुलिस के पास दोनों की कोई जानकारी है और न ही दोनों युवकों के गुमशुदगी का मामला दर्ज हुआ है।
वैसे जब नजीर के पिता से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि नजीर 15 तारीख को ही कहीं पेंटिंग का काम करने की बात कहकर निकला है, जो अब तक नहीं लौटा है। तो फिर घटना के दिन तवरेज के साथ कैसे था ?
वीडियो क्लिप पर भी सवाल उठाया जा सकता है क्योंकि घटना के वक्त अगर ग्रामीण पिटाई कर रहे थे तो वीडियो किसने बनाया ? उसकी मंशा क्या थी, और वीडियो वायरल कैसे हुआ ?
वैसे पुलिस की लापरवाही इस बात से भी समझी जा सकती है कि जब अगले दिन परिजन द्वारा तवरेज की पिटाई को लेकर काउंटर केस ग्रामीणों पर किया जा रहा था तो फिर पुलिस ने काउंटर केस दर्ज क्यों नहीं किया। ऐसे कई सवालों के जांच का जिम्मा एसआईटी के हवाले है।
कोई ऐसा तत्व है जो मामले को जरूरत से ज्यादा तूल देने में लगा है, शोषल मीडिया पर कड़ा नियंत्रण जरूरीः कल जब राज्य अल्पसंख्यक आयोग एवं अन्य मुस्लिम संगठन स्वतंत्र जांच करने पहुंची थी, उस वक्त कुछ युवकों ने स्थिति की नजाकत को देखते हुए शोषल मीडिया पर कुछ ऐसे तस्वीरों को लेकर बखेड़ा शुरू कर दिया, जो पूरी तरह से विवादित और दुर्भावना से ग्रसित प्रतीत हो रहा था।
हालांकि एसडीओ बशारत कयूम और एसडीपीओ अविनाश कुमार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्काल पूरे फुटेज की जांच की और उसे गलत साबित कर दिखाया। जिसके बाद बलवा करने का प्रयास कर रहे युवक शांत हुए।
इसी तरह घटना के ठीक अगले दिन बहुजन क्रांति मोर्चा व अन्य संगठन के सदस्य धातकीडीह गांव जाकर वहां से फेसबुक लाइव के जरिए विवादित पोस्टिंग कर लोगों को भड़काने का काम कर रहे थे।
इससे साफ समझा जा सकता है कि कुछ लोग जो अमन के विरोधी हैं वह कतई नहीं चाहते हैं कि पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो। मृतक की बेवा के साथ जिला प्रशासन और राज्य सरकार के साथ-साथ अल्पसंख्यक आयोग की भी सहानुभूति है और होना भी चाहिए।
लेकिन उसकी आड़ में शोषल मीडिया के माध्यम से विवादित पोस्टिंग से आम जनता को बचने की जरूरत है। क्योंकि कुछ लोग नहीं चाहते कि जिले में अमन और शांति बहाल हो। निष्पक्ष जांच के सभी पक्षधर हैं। लेकिन निर्दोष पर कार्रवाई कोई नहीं चाहते।
भले ही इस मामले पर राजनीति हो रही हो, लेकिन सच को सच लिखने से नहीं चूकना चाहिए। रही बात बड़े मीडिया घरानों की तो वे यहां 1 सप्ताह 10 दिन कैंपेनिंग करके पूरी रिपोर्टिंग करें तो मूल बातें सामने आ सकती है, लेकिन हवाई यात्रा और लग्जरी गाड़ियों के सफर के आधार पर जमीनी रिपोर्टिंग और सच्चाई सामने नहीं आ सकती है।
वर्तमान स्थिति यही है कि दोनों ही गांव के लोग डरे सहमे है। जरूरत है इन्हें आपस में सौहार्द का माहौल बनाते हुए मामले का मिल बैठकर निपटारा करने का। क्योंकि 365 दिन दोनों ही ग्रामीणों को एक दूसरे के सुख- दुख में भागीदार बनना है।
बड़े- बड़े मीडिया घराने और बड़ी-बड़ी बातें करने वाले संगठन के लोग कल नजर नहीं आएंगे। मृतक तबरेज के बेवा की क्या स्थिति है, इसका हाल जानने कल कोई नहीं आएंगे।
अगर कोई आएगा तो स्थानीय समाज, स्थानीय परिजन और स्थानीय प्रशासन। ऐसे में पूरे मामले पर संजीदगी से सोचने की आवश्यकता है।