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    Thursday, April 18, 2024
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      अंक अगर परिणाम तय करता तो मैं आइएएस न होता : योगेन्द्र सिंह

      “मैं सरकारी स्कूल में पढ़ा, कभी भी 70 फीसद से अधिक अंक नहीं आए, न मैं किसी कोचिंग में गया और न ही यूपीएससी की कोचिंग की, फिर भी आइएएस बना। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मेरा लक्ष्य कभी अंक रहा ही नहीं। मैंने पढ़ाई ज्ञान (नॉलेज) के लिए की। खोने के लिए कुछ था नहीं और जो पाया उसे ही सफलता समझा….”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। खुद की सफलता के बारे में यूपीएससी की परीक्षा पास कर सीधे आईएएस के लिए चुने गए नालंदा के युवा डीएम योगेन्द्र सिंह ने उक्त बातें स्थानीय हिन्दी दैनिक जागरण से कही और बताया, “घर में कोई मैट्रिक से ज्यादा पढ़े नहीं थे। इसलिए जुनून था कि उच्च शिक्षा हासिल करके परिवार का मान-सम्मान बढ़ाना है। मुङो अंक तो उस चीज के मिले, जिसकी मैंने पढ़ाई की।”

      उन्होंने कहा कि  ध्यान यह देना है कि पढ़ाई से मुझमें ओवर ऑल डेवलपमेंट क्या हुआ। आज अंक, परसेंट और परसेंटाइल की अंधी दौड़ लाखों मेधावियों के मन में निराशा का भाव पैदा कर रहा है। यह कहीं से ठीक नहीं है।

      nalanda dm yogendra singh ias 1डीएम ने कहा कि आज जिसे देखो वह अंक के पीछे दौड़ रहे हैं, जबकि जिंदगी की दौड़ में यह ज्यादा मायने नहीं रखता। पढ़ाई के बाद आपका ओवरऑल डेवलपमेंट काउंट करता है। प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव यूपी के उन्नाव जिले के हरयपुर से पूरी की। संसाधन बेहतर नहीं थे, फिर भी उसका मलाल नहीं रहा। 

      ” मैंने अपने जीवन में कभी अपनी तुलना किसी से नहीं की। हमेशा अपनी सकरात्मक व रचनात्मक सोच से आगे बढ़ता गया। अंक हमेशा 65 व 70 के बीच में ही रहा। घर में लोग ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे। इसलिए जो मिला उसे ही सफलता की सीढ़ी मानकर चढ़ता गया”।

       आइएएस योगेन्द्र सिंह ने कहा कि आज के बच्चे अपने अरमान पूरा करने में नहीं, बल्कि अभिभावकों की उम्मीदों पर खरा उतरने में जुटे हैं। इसलिए अधिक से अधिक अंक हासिल करने की होड़ में लगे रहते है। उनका मानना है कि बच्चों को स्वतंत्र छोड़ दें। उन्हें वह करने दें, जो वह चाहते हैं।

      उन्होंने कहा कि अक्सर देखने को मिलता है कि अभिभावक जो खुद नहीं कर पाए, उसे अपने बच्चों पर थोप देते है। इससे न केवल उनका करियर प्रभावित होता है, बल्कि व्यक्तिगत जीवन पर भी असर पड़ता है।

      उन्होंने अधिकाधिक ज्ञान अर्जित करने पर बल देते हुए कहा कि बेहतर करियर के लिए भाग-दौड़ भले ही स्कूल के बाद शुरू होती हो, लेकिन नींव यहीं से मजबूत होती है। इस दौरान सबसे अधिक महत्वपूर्ण ज्ञान को आत्मसात करना होता है, जबकि वर्तमान शिक्षा पद्धति में न चाहते हुए भी बच्चे अंकों की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। इस क्रम में वे किताबी जानकार तो बन जाते हैं, लेकिन विषय की व्यापक जानकारी में कमी रह जाती है।59380734 2225226064473735 1733497290846371840 n

      “अच्छे अंक जरूरी हैं, लेकिन यही सफलता की गारंटी नहीं होती। छात्र की योग्यता, बुद्धिमत्ता एवं ज्ञान का आकलन 10वीं एवं 12वीं के प्राप्तांक से किया जा रहा है, जिनके अंक अधिक वही टॉपर। शिक्षण संस्थानों व मां-पिता को अब सोच बदलनी होगी। 99 फीसद लाने वाले बच्चे से ज्यादा बुद्धिमान 70-80 फीसद अंक लाने वाला बच्चा हो सकता है।”

      डीएम ने कहा कि आज हर हाथ में स्मार्ट फोन है। अभिभावक गूगल सर्च करें और विदेशों की शिक्षण प्रणाली देखें। वहां छात्रों की रूचि के हिसाब से पाठ्यक्रम निर्धारित किया जाता है। अगर वह संगीत में रूचि रखता है तो उसके लिए अलग अकादमी है। वहां पर बच्चों को स्पेस मिलता है। आप अपने ही जिला में देख लें कि इतने सारे निजी स्कूल है लेकिन सभी ने मिलकर शहर को क्या दिया। न स्टेडियम है, न ही ढंग की लाइब्रेरी, न कोई संगीत विद्यालय। स्कूल सिलेबस के हिसाब से पढ़ाई पूरी करवाती है और काम खत्म।

      उन्होंने कहा कि अंकों का भविष्य की सफलता से कोई सीधा नाता नहीं होता है। अच्छे अंक पाने वाले ही सफल हों, यह जरूरी नहीं। औसत या औसत से कम अंक पाने वाले भी जीवन में सफलता के नए आयाम लिखते हैं। हमारे आसपास ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं।NALANDA DM 2

      डीएम ने अभिभावकों से अपील की कि बच्चों को प्रेशर कुकर न बनाएं। अपनी अधूरी इच्छाओं को बच्चों के जरिए पूरी करने की कोशिश न करें। यहीं पर दो पीढ़ियों का टकराव भी उत्पन्न होता है।

      उन्हें लगता है कि बच्चे ने यदि आइआइटी से नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं कर सकेगा। डाक्टर या इंजीनियर नहीं बना तो जीवन में सफल नहीं होगा, इससे बचना चाहिए। माता-पिता बच्चों की योग्यता को देखते हुए उन्हें उनकी पसंद के करियर चुनाव में मदद करें।

      “बच्चों को बताएं कि जो करियर वे चुन रहें हैं, उसमें उनके सामने किस प्रकार की चुनौतियां आएंगी। इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे बेहतर तैयारी के साथ आगे बढ़ सकते हैं।”59295956 477731659631879 7819804345456656384 n

      श्री योगेन्द्र सिंह ने कहा कि किसी भी छात्र को अपनी विशेष रुचि व अभिरुचि के बारे में बेहतर पता होता है। ऐसे में माता-पिता व शिक्षकों को सहयोग करना चाहिए। ताकि वे उसी अनुरूप अपने अध्ययन व करियर की दिशा चुन सकें। कार्य क्षेत्र में परिणाम, गुणवत्ता एवं नवीनीकरण ही व्यक्ति को सफल या असफल बनाता है।

      उन्होंने कहा कि बदलते समय में बहुमुखी प्रतिभाएं विकसित हुई हैं। यदि बच्चा अपनी विशेष क्षमताओं के अनुरूप अध्ययन की दिशा का चुनाव करेगा तो न उसे नंबर का भय होगा और न ही साथियों से पिछड़ने की ग्लानि। बच्चे परिजनों का सपना टूटने के डर से गणित व विज्ञान जैसे विषयों के प्रति अपने डर को बयां नहीं कर पाते हैं।

      परिजन बच्चों को अपना लक्ष्य स्वयं निर्धारित करने के लिए प्रेरित करें। तीन घंटे की परीक्षा उनकी प्रतिभा का पूरा मूल्यांकन नहीं बल्कि एक अंश मात्र है।

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