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    Thursday, March 28, 2024
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      सीबीआई और न्यायालय पर भारी हैं आयकर अधिकारी श्वेताभ सुमन !

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। एक हिन्दी न्यूज वेबसाइट ने आज कल विभिन्न आरोपों में घिरे चर्चित आयकर आयुक्त श्वेताभ सुमन को लेकर कई अहम खुलासे किए हैं। “सीबीआई, न्याय पालिका पर भारी आयकर आयुक्त” शीर्षक से जिस तरह की सूचनाएं उभर कर सामने आई है, लोकतंत्र को झकझोरने वाली है।

      अब देखिए न। बीते माह की बात है। १० जुलाई २०१५ की सुबह ठीक ११:१५ बजे सीबीआई जज अनुज कुमार संगल की देहरादून अदालत के अर्दली ने आवाज लगाई सीबीआई बनाम श्वेताभ सुमन। तभी आयकर आयुक्त श्वेताभ सुमन अपने दिल्ली से आए वकील ए.कौशिक और स्थानीय वकील यशपाल सिंह पुण्डीर तथा सीबीआई से रिटायर्ड हुए चंद्रदत्ता अपने नए वकील के साथ अदालत के सामने उपस्थित हुए।

      जैसे ही श्वेताभ सुमन न्यायालय में उपस्थित हुए न्यायालय में उपस्थित सभी कर्मचारी अन्य वकील एवं वादकारी सन्न रह गए, जब सीबीआई जज अनुज कुमार संगल ने श्वेताभ सुमन को संबोधित करते हुए कहा कि आपने अपने पक्ष में आदेश कराने के लिए “मुझे ६० लाख रुपए रिश्वत देने की पेशकश करवाई। आपने अदालत के न्यायिक प्रशासन में दखल दिया इसलिए आपकी जमानत निरस्त की जाती है और आपको हिरासत में लिया जाता है।“

      श्वेताभ सुमन ने कहा कि उन्होंने ऐसी रिश्वत की कोई पेशकश नहीं की और न ही किसी को रिश्वत देने के लिए भेजा।

      जज महोदय ने उनकी इस दलील को खारिज करते हुए खुली अदालत में आदेश पारित किया कि “अभियुक्त श्वेताभ सुमन द्वारा न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को अपने पक्ष में आदेश पारित करने हेतु  रिश्वत की पेशकश अपने एक परिचित के माध्यम से की गई है। अभियुक्त का यह कृत्य न केवल -भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा -12 के अंतर्गत कारित अपराध की श्रेणी के अंतर्गत आता है वरन न्यायालय इस मत का है कि अभियुक्त का यह कृत्य उसे प्रदत्त जमानत को निरस्त किए जाने का पर्याप्त आधार है।”

      जज महोदय ने  कहा, “प्रस्तुत मामले में तो अभियुक्त द्वारा पीठासीन अधिकारी को प्रभावित करने का प्रयास किया गया है तथा पारदर्शी तरीके से न्यायालय प्रक्रिया चलने में हस्तक्षेप किया गया है। अत: अभियुक्त श्री सुमन को प्रदत्त जमानत निरस्त की जाती है उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में लेकर जिला कारागार भेजा जाए।”

      यही नहीं माननीय न्यायाधीश द्वारा अभियुक्त श्वेताभ सुमन के विरुद्ध भ्रष्टचार निवारण अधिनियम की धारा-12 के अंतर्गत मामला पंजीकृत करने हेतु सीबीआई को भी निर्देशित किया गया। सभी को जिज्ञासा है कि आखिर ये श्वेताभ सुमन कौन है और किस मामले में इन्होंने ६० लाख रुपए की रिश्वत देने की पेशकश की।

      श्वेताभ सुमन १९८८ बैच के भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी है और वे आयकर विभाग में सहायक आयुक्त से लेकर आयुक्त के पद तक पर तैनात रहे है। श्वेताभ सुमन देहरादून, बोधगया, ओरंगाबाद, नोएडा एवं अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर तैनात रहे है। लोगों को धमकाना, उनसे मोटी धनराशि वसूल करने के मामलों में सदैव चर्चित रहे है।

      श्वेताभ सुमन बिहार के रहने वाले है और इनका काम करने का तरीका यह है कि जहां भी नियुक्त रहते है वहां बिहार के रहने वाले आईएएस, आईपीएस अधिकारियों एवं इनके माध्यम से अन्य उच्च अधिकारियों से दोस्ती रखते है और भय दिखाकर आयकर दाताओं से अवैध वसूली करते है।

      ये देहरादून में भी नियुक्त रहे है और देहरादून में सीबीआई का दफ्तर भी है इसलिए जब इनके भ्रष्टाचार के चर्चे सीबीआई तक पहुंची तो सीबीआई ने प्रारंभिक जांच के उपरांत इनके एवं इनकी माता श्रीमती गुलाब देवी एवं अन्य सहयोगियों के विरुद्ध दिनांक २.८.२००५ को आय से अधिक संपत्ति रखने के अपराध में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-१३ (२) सपठित-१३ (१) (सी) के अंतर्गत मामला दर्ज किया।

      जिसके अनुसार सीबीआई ने पाया कि १.४.१९९७ से ३१.३.२००४ के बीच इन्होंने करोड़ों रुपए की आय से अधिक संपत्ति अर्जित की, अपनी माता के नाम से जमीन खरीदी एवं अन्य सहयोगियों के नाम से बेनामी संपत्ति अर्जित की।

      इस मामले में डा. श्वेताभ सुमन के विरुद्ध सीबीआई द्वारा ऐसी संपत्तियों को कुर्क करने के लिए प्रार्थना की गई थी जो श्वेताभ सुमन ने भ्रष्टाचार करके अर्जित की। इसी प्रार्थना पत्र पर न्यायालय में सुनवाई चल रही थी।

      श्वेताभ सुमन को यह विधिक राय प्राप्त थी कि यदि न्यायालय द्वारा उक्त संपत्ति को कुर्क कर दिया गया तो यह प्रथम दृश्या पाया जाएगा कि उसने भ्रष्टाचार किया है और इससे अंत में उनके विरुद्घ प्रतिकूल निर्णय आने की संभावना बढ़ जाएगी तथा अन्य सहयोगियों के लिए भी समस्या उत्पन्न हो जाएगी।

      इसके विपरीत यदि न्यायालय द्वारा संपत्ति को कुर्क नहीं किया जाता तो यह अवधारणा उत्पन्न होगी कि श्वेताभ सुमन द्वारा प्रथम दृश्या संपत्ति भ्रष्टाचार से इंकार नहीं की गई और यह बात उन्हें अंत तक सहायता करेगी। इसीलिए श्वेताभ सुमन ने इस प्रार्थना पत्र को खंडि़त कराने के लिए ६० लाख रुपए रिश्वत की पेशकश न्यायाधीश को की।

      ऐसा नहीं है कि श्वेताभ सुमन इस प्रकार की नौटंकी पहली बार की हो अथवा न्याय प्रक्रिया में दखल देने का पहली बार प्रयास किया हो। श्वेताभ सुमन प्रारंभ से ही अपने विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने और सीबीआई की पूछताछ से बचने के लिए नाटकीय अंदाज में हरकते करते रहे है।

      ssp praveen२००५ में जब सीबीआई ने इनके विरुद्ध मामले में जांच प्रारंभ की तो श्वेताभ सुमन जमशेदपुर में अपर आयुक्त नियुक्त थे। इन्होंने जांच से बचने के लिए अपने अपहरण की नौटंकी की और अपने मित्र जितेंद्र सिंह के माध्यम से हजारीबाग में रिपोर्ट लिखवाई कि जब वे किराए की टैक्सी इंडिका कार से अपने मित्र के साथ जा रहे थे तो ग्राम बारही जनपद हजारीबाग झारखण्ड में छह हथियारबंद लोगों ने उनका अपहरण कर लिया।

      इस खबर से पूरे झारखण्ड में हड़कंप मच गया और पूरा पुलिस विभाग श्वेताभ सुमन की कथित सुरक्षित बरामदगी के लिए लग गया, लेकिन तत्कालीन पुलिस अधीक्षक हजारीबाग प्रवीन सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने इस अपहरण की कहानी में काफी छेद पाए और पाया कि टैक्सी का कथित ड्राइवर और श्वेताभ सुमन के मित्र जितेंद्र सिंह के बयानों में काफी विरोधाभास है। श्वेताभ सुमन के परिवारजनों से मिलने तथा बात करने से ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि उन्हें श्वेताभ सुमन की अपहरण से कोई दु:ख हो अथवा वे उनकी सुरक्षा के बारे में चिंतित हो।

      पुलिस अधीक्षक हजारीबाग प्रवीन सिंह ने खुलासा किया कि श्वेताभ सुमन के विरुद्ध सीबीआई जांच प्रारंभ हुई और उन्हें निलंबित कर चैन्नई ट्रांसफर कर दिया गया था और उनसे सीबीआई द्वारा गहन पूछताछ की जानी थी। इसलिए इस प्रक्रिया से बचने के लिए श्वेताभ सुमन ने अपने अपहरण का झूठा ड्रामा रचा।

      यही नहीं श्वेताभ सुमन ने देहरादून में अपनी नियुक्ति के दौरान अपने विरुद्ध शिकायतों की पत्रावलियों को मुख्य आयकर आयुक्त के कार्यालय से चोरी कर लिया और यह पत्रावलियां श्वेताभ सुमन के घर से बरामद हुई।

      इस मामले में भी श्वेताभ सुमन के विरुद्ध चीफ जूडिशियल मजिस्ट्रेट देहरादून के न्यायालय में अपराधिक मामला चल रहा है।

      इस मामले में भी आगे कार्यवाही न चले श्वेताभ सुमन द्वारा अनेक प्रकार के हथकंडे अपनाकर मुकदमे की कार्यवाही को आगे न चलने देने का प्रयास किया गया।

      IMG-20150717-WA0008फाइले चोरी के इस मामले को कुछ दिन पूर्व तक देख रहे सीजेएम राजीव कुमार पर भी श्वेताभ सुमन ने दबाव डालकर मुकदमे में तारीख पर तारीख लेने की कोशिश की और जब न्यायालय ने विवश होकर तारीख देने से मना कर दिया तो श्वेताभ सुमन ने अपने वकील को ही बीमार बताकर सीएमआई देहरादून में भर्ती करा दिया।

      आगली तारीख पर जब सीएमआई ने भर्ती करने से मना कर दिया तो श्वेताभ सुमन ने अपने वकील को मुजफ्फरनगर अस्पताल में भर्ती करा दिया और वकील के व्यक्तिगत आधार पर तारीख लेने की कोशिश की।

      न्यायालय दुविधा में पड़ जाता है जब वकील की बीमारी के व्यक्तिगत आधार पर मुकदमे में तारीख लेने की प्रार्थना की जाए। इस प्रकार से श्वेताभ सुमन के ड्रामों से सीबीआई, पुलिस एवं अदालते पहले से ही वाकिफ है।

      ऐसा नहीं है कि श्वेताभ सुमन के पास केवल धन, छल, बल है।

      कहते हैं कि भारत सरकार, आयकर विभाग, सीबीआई एवं न्यायपालिका में उनके मित्रों की भरमार है जो उन्हें संरक्षण देती है।

      श्वेताभ सुमन के प्रभाव का अंदाजा इसी से लगता है कि जब २००५ में उन्हें निलंबित किया गया तथा उनका स्थानांतरण चेन्नई कर दिया गया तो वह चेन्नई नहीं गए और कैट से अपने निलंबन आदेश को रद्द करवा लिया।

      इस मामले में आयकर विभाग ने कैट के निर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत नहीं की और आयकर विभाग द्वारा कठोरता से विरोध न करने के कारण कैट द्वारा उनके निलंबन को रद्द कर दिया गया। सीबीआई भी मूक बनी रही।

      उस समय भी यह चर्चा थी कि श्वेताभ सुमन ने दो करोड़ रुपए अपनी बहाली के लिए खर्च किए है। देश में ऐसा ही कोई अधिकारी होगा, जिस पर भ्रष्टाचार तथा सरकारी फाइलें चोरी करने के आपराधिक मामला चल रहा हो तथा वह फिर भी निलंबित न हो और उल्टे इस बीच उसको प्रोन्नति भी प्राप्त हो गई हो।

      श्वेताभ सुमन वर्तमान में प्रोन्नत होकर मुजफ्फरनगर जैसी बड़े व्यापारिक मंडी क्षेत्र में मलाइदार आयकर आयुक्त के पद पर नियुक्त है।

      ranjeet_cbi_directorतत्कालीन सीबीआई निर्देशक रणजीत सिन्हा उत्तराखण्ड में नियुक्त आईएएस अधिकारी डा. ओम प्रकाश प्रमुख सचिव, आईपीएस अमित सिन्हा डीआईजी उत्तराखण्ड, शत्रुघन सिंह आईएएस जैसी अनेक अधिकारियों के संरक्षण का दावा श्वेताभ सुमन सदैव सार्वजनिक रूप से करते रहे है।

      यही नहीं वर्तमान में वित्त राज्यमंत्री श्री जयंत सिन्हा से भी वो अपने करीबी रिश्ते बताते है। उनके कथन में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता लेकिन, परिस्थितियां तो यही बताती है कि उनका कथन किसी भी प्रकार से गलत प्रतीत नहीं होता। यदि सीबीआई, आयकर के अधिकारी, मंत्री श्वेताभ सुमन के प्रभाव में न होते तो आज भ्रष्टाचार, सरकारी पत्रावलियां चोरी जैसे आरोपों का आरोपी कम से कम निलंबित तो अवश्य होता।

      एक सर्वेक्षण बताता है कि श्वेताभ सुमन पूरे देश में ऐसे पहले उच्च अधिकारी है जो न्यायालय द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों से आरोपित होने के उपरांत भी निलंबित नहीं है और एक भी दिन न्यायिक हिरासत में नहीं रहे।

      भ्रष्टाचार के मामले में जब सीबीआई न्यायालय में प्रथम बार श्वेताभ सुमन उपस्थित हुए तो उसी समय सीबीआई द्वारा उनके प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करा दी गई तथा तत्कालीन सीबीआई जज श्री प्रदीप पंत द्वारा उन्हें तुरंत जमानत प्रदान कर दी।

      यह अलग बात है कि छोटे-छोटे कर्मचारी भ्रष्टाचार के मामले में महीनों, वर्षों तक जमानत प्राप्त नहीं कर पाते। जनमानस को विधि का ज्ञान नहीं है लेकिन जिस प्रकार का संदेश श्वेताभ सुमन के मामले में अन्य वादकारियों, विधि व्यवसाय से जुड़े लोगों तथा जनता में जा रहा है, उससे साफ लगता है कि श्वेताभ सुमन के सामने सीबीआई, पुलिस और न्याय पालिका भी बौनी साबित हो रही है।

      यही नहीं वर्तमान मामला जिसमें कि श्वेताभ सुमन द्वारा सीबीआई जज अनुज कुमार संगल को रिश्वत की पेशकश की गई तथा न्यायालय द्वारा आदेश पारित कर उनकी जमानत निरस्त की गई और हिरासत में लिया गया, लेकिन जज द्वारा तुरंत अपने जमानत निरस्तीकरण के आदेश को वापस लेकर अभियुक्त श्वेताभ सुमन को जमानत प्रदान की गई और श्वेताभ सुमन फिर जेल जाने से बच गए। यह प्रक्रिया अभूतपूर्व है और केवल श्वेताभ सुमन को ही इस प्रकार से जमानत मिल सकती है।

      न्यायविदों का मानना है कि या तो सीबीआई जज को जमानत निरस्त करने से पहले ही श्वेताभ सुमन को कारण बताओ नोटिस देना चाहिए था कि क्यों न उनकी जमानत निरस्त कर दी जाए और उनके जवाब के बाद जमानत पर निर्णय होता। लेकिन यदि जज द्वारा अपनी संतुष्टि व्यक्त कर दी गई कि  “अभियुक्त द्वारा पीठासीन अधिकारी को प्रभावित करने का प्रयास किया गया है तथा पारदर्शी तरीके से न्याय पक्रिया चलने में हस्तक्षेप किया गया है अत: अभियुक्त को प्रदत्त जमानत निरस्त की जाती है। उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में लेकर जिला कारागार भेजा जाए। ”

      इसके बाद न्यायालय द्वारा अपने इस आदेश को वापिस लेने का कोई अधिकार नहीं है न्यायालय द्वारा अपना उक्त आदेश वापिस लिया गया। जमानत खारिज करने के आदेश को न्यायालय द्वारा श्वेताभ सुमन के उस प्रार्थना पत्र पर पारित किया गया, जिसमें उन्होंने स्वयं को निर्दोष बताया था।

      आदेश पारित होने के उपरांत अभियुक्त की ओर से एक प्रार्थना पत्र इस आशय का प्रस्तुत किया गया है कि अभियुक्त द्वारा कभी न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं किया गया है। अभियुक्त इस संबंध में जांच को तैयार है। अत: इस प्रकरण में जांच होने तक श्री श्वेताभ सुमन को यदि आज जमानती नहीं है तो व्यक्तिगत बंद पत्र प्रस्तुत किया जाए। रिहा किया जाता है।

      न्यायालय द्वारा अभियुक्त को यह अवगत कराने पर कि उसने रिश्वत की पेशकश की है, अभियुक्त ने न्यायालय को जमानत निरस्त करने से पहले ही यह कहा था कि उसने किसी को रिश्वत की पेशकश करने के लिए नहीं भेजा लेकिन, न्यायालय द्वारा पूर्ण संतुष्ट अंकित करने के उपरांत कि अभियुक्त द्वारा ऐसा किया गया है, श्वेताभ सुमन की जमानत निरस्त की थी तथा उसके विरुद्ध पुन: भ्रष्टचार निरोधक अधिनियम की धारा-१२ के अंतर्गत अपराध पंजीकृत कराने के आदेश दिए थे।

      फिर न्यायालय अपने आदेश को वापस नहीं ले सकती और न ही ऐसा कोई प्रावधान है जिसके अनुसार एक बार जमानत निरस्त करने के बाद पुन: अभियुक्त को जमानत पर छोड़ दिया जाए।

      विधि विशेषज्ञों के अनुसार दोनों आदेश एक साथ विधिक नहीं हो सकते। यदि जमानत निरस्त करने का आदेश विधिक था तो पुन: जमानत देने का आदेश पूर्णतय: अविधिक है और यदि दूसरा जमानत आदेश विधिक है तो पहला आदेश अविधिक था और यह माना जाएगा कि न्यायालय द्वारा पुन: जमानत देकर अपनी गलती सुधारी गई है।

      १० जुलाई को सीबीआई न्यायालय में हुए नाटक के विषय में न्यायालय प्रांगण के गलियारों में अलग-अलग विचार है।

      कुछ का कहना है कि जज को इस प्रकार के नाटकीय घटनाक्रम से बचना चाहिए। इससे संदेश जाता है कि कुछ न्यायिक अधिकारी सुर्खियों में रहना चाहते है।

      कुछ लोगों के विचार है कि श्वेताभ सुमन की हरकतों का खुलासा जब तक खुले न्यायालय में न हो तब तक यह व्यक्ति नहीं सुधरेगा और अपने धन, बल और छल-बल से पूरे तंत्र की, पूरे शासन, न्यायिक तंत्र की मजाक उड़ाता रहेगा।

      बताते हैं कि सीबीआई ने यह पता लगा लिया है कि श्वेताभ सुमन ने अपने परिचित के माध्यम से न्यायाधीश अनुज कुमार संगल के पिता से संपर्क किया। जिसकी कॉल डिटेल्स सीबीआई ने प्राप्त कर ली है।

      इसके उपरांत श्री संगल के पिता ने उन्हें इस प्रकार के श्वेताभ सुमन के प्रयास के बारे में सूचना दी है और फिर अमुक व्यक्ति ने सीधे सीबीआई न्यायाधीश से  संपर्क किया और ६० लाख रुपए की रिश्वत की पेशकश की और यह भी बताया कि धनराशि ७० लाख तक हो सकती है।

      सीबीआई ने संपर्क करने की सभी कॉल डिटेल्स का रिकॉर्ड प्राप्त कर लिया है और उस व्यक्ति की पहचान भी प्राप्त कर ली है जो कथित रूप से श्वेताभ सुमन की ओर से रिश्वत देने की पेशकश कर रहा था, लेकिन अभी सीबीआई जांच पूरी होने तक कोई खुलासा करने से बच रही है।

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